रुद्रप्रयाग: आषाढ़ माह की संक्रांति के दिन विधि-विधान से केदारपुरी के रक्षक भुकुंट भैरव और केदारनाथ मंदिर में देश की सुख-समृद्धि तथा खुशहाली के लिए यज्ञ और पूजा-अर्चना की गई. केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों की तरफ से कोरोना को खत्म करने के लिए हवन-पूजन किया गया. इस दौरान स्थानीय श्रद्धालु ही हवन-पूजन में शामिल हो पाएं. केदारनाथ धाम में तीर्थ पुरोहितों द्वारा विश्व कल्याण और देश की सुरक्षा और समृद्धि के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजन हुआ.
केदारनाथ में हुई भुकुंट भैरव पूजा. ये भी पढ़ें:उत्तराखंड में कोरोना वायरस का 'सफरनामा', जानिए कब-क्या हुआ?
कोरोना संकट के चलते इस बार 21 तीर्थ पुरोहित ही यज्ञ में शामिल हो पाए. तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि केदारपुरी के रक्षक भुकुंट भैरव का यज्ञ और पूजा-अर्चना की गई. हर साल आषाढ़ माह की संक्रांति को भुकुंट भैरव के यज्ञ और पूजा-अर्चना की परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है. धाम में यह पूजा पुरोहितों की ओर से विश्व कल्याण और क्षेत्र की सुरक्षा और समृद्धि के लिए वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ की गई.
केदारनाथ से पहले इनकी पूजा
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार जहां-जहां शिव भगवान के मंदिर हैं, वहां पर काल भैरव जी के मंदिर भी स्थित होते हैं. माना जाता है कि जब तक भैरव के दर्शन ना कर लिया जाए, तब तक भगवान शिव के दर्शन भी अधूरे माने जाते हैं. बाबा केदार की पूजा से पहले केदारनाथ भुकुंट बाबा की पूजा किए जाने का विधान है और भुकुंट भैरव को केदारनाथ का पहला रावल माना जाता है. केदारनाथ धाम से आधा किलोमीटर दूर पर भुकुंट भैरव का मंदिर स्थित है. शीतकाल में केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा भुकुंट भैरव के भरोसे ही रहती है.
यह कथा है चर्चित
स्थानीय लोगों के मुताबिक 2017 में मंदिर समिति को कपाट बंद करने के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. कपाट में कुंडे लगाने में हो रही दिक्कतों के साथ पुरोहितों ने भुकुंट भैरव का आह्वान किया तो कुछ समय के बाद कुंडे ठीक तरीके से बैठ गए. जिसके बाद मंदिर समिति ने कपाट को बंद किया. इसके बाद से ही शीतकालीन में केदारनाथ मंदिर की सुरक्षा-व्यवस्था भुकुंट भैरव के भरोसे रहती है.