रुद्रप्रयाग: एकादशी पर अलकनंदा-मंदाकिनी नदी के संगम स्थल पर देव निशानों और पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा-शुद्धिकरण के साथ ही भरदार क्षेत्र के तरवाड़ी गांव में पांडव लीला शुरू हो गई है. बताया जाता है कि स्वर्ग जाते समय पांडव अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होकर स्वर्गारोहिणी गए थे. जहां से पांडव गुजरे उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है.
हर साल नवंबर से लेकर फरवरी तक केदारघाटी में पांडव नृत्य का आयोजन होता है. खरीफ की फसल कटने के बाद एकादशी व इसके बाद से इसके आयोजन की पौराणिक परंपरा है. जिला मुख्यालय से जुड़ी हुई ग्राम सभा दरमोला की बात करें तो यहां पर हर साल पांडव नृत्य का आयोजन एकादशी पर्व पर होता है.
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पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों में बाणों की पूजा की परंपरा मुख्य है. ग्रामीणों के अनुसार स्वर्ग जाने से पहले भगवान कृष्ण के आदेश पर पांडव अपने अस्त्र-शस्त्र पहाड़ में छोड़कर मोक्ष के लिए स्वर्गारोहिणी की ओर चले गए थे. जिन स्थानों पर यह अस्त्र छोड़ गए थे, उन स्थानों पर विशेष तौर से पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है और इन्हीं अस्त्र-शस्त्रों के साथ पांडव नृत्य करते हैं.
वहीं अन्य स्थानों पर पंचाग की गणना के बाद ही शुभ दिन निश्चित किया जाता है. केदारघाटी में पांडव नृत्य अधिकांश गांवों में आयोजित किए जाते हैं, लेकिन अलकनंदा व मंदाकनी नदी के किनारे वाले क्षेत्रों में पांडव नृत्य अस्त्र-शस्त्रों के साथ किया जाता है, जबकि पौड़ी जनपद के कई क्षेत्रों में मंडाण के साथ यह नृत्य भव्य रूप से आयोजित होता है.