रूद्रप्रयाग: केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के बाद 10 मई की सुबह 11 बजे तुंगनाथ धाम के कपाट भी भक्तों के लिए खोल दिए गए. शुक्रवार सुबह डोली चोपता से धाम के लिए रवाना होकर 10.30 बजे तुंगनाथ धाम पहुंची, जिसके बाद पूरे विधि-विधान के साथ तुंगनाथ के कपाट खोले गए. इस मौके पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे.
गुरुवार सुबह भूतनाथ मंदिर में आचार्यों और ब्राह्मणों द्वारा पंचांग पूजन के साथ-साथ भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली के अलावा 33 कोटी देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की गई. तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली मक्कू गांव स्थित भूतनाथ मंदिर से प्रस्थान कर रात्रि प्रवास के लिए अपने अंतिम पड़ाव चोपता पहुंची, जिसके बाद शुक्रवार सुबह डोली चोपता से धाम के लिए रवाना हुई.
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कपाट खुलने के बाद दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी रही. तुंगनाथ धाम के कपाट श्रद्वालुओं के लिए ग्रीष्मकालीन के लिए खोले गए हैं.
तुंगनाथ से संबंधित रोचक तथ्य-
- पंचकेदारों में तृतीय केदार है तुंगनाथ, यहां शिव की भुजाओं की पूजा होती है.
- तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाते हैं.
- भगवान को डोली में बैठाकर भक्तगण मार्कण्डेय मंदिर मक्कूमठ में लाते हैं, जहां उनकी 6 महीने पूजा होती है.
- यहां तक ऊखीमठ से 28 किमी चोपता मोटर मार्ग से व वहां से 4 किमी पैदल चढ़ाई चढ़कर पहुंचा जा सकता है.
- तुंगनाथ सत्य तारा पर्वत पर स्थित है. सप्त ऋषियों एवं तारागणों ने यहां पर शिव पार्वती का तप कर ऊंचाई पर रहने का वरदान प्राप्त किया था.
- यह पृथ्वी का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिवालय है जो समुद्र तल से 3750 मीटर है. इतनी ऊंचाई पर होने पर भी यह पंच केदारों में सबसे सुगम है.
- इससे भी ऊपर 1.50 किमी की ऊंचाई पर चन्द्र शिला चोटी है, यहां राम ने ब्रह्म हत्या से मुक्ति के लिए तप किया था.
- यहां से बदरीनाथ, पंचचूली, सप्तचूली, बंदर पूंछ, हाथी पर्वत और केदारनाथ आदि अनेक हिमालयों के दर्शन होते हैं.
- यहां बिना पूंछ वाले चूहे भी पाये जाते हैं जिन्हें रुंडा कहा जाता है.
- यहां गुलाबी बुरांस के अतिरिक्त सफेद बुरांस भी पाया जाता है.