देहरादूनःदेवभूमि के कण-कण में भगवान शिव विराजते हैं. शिवरात्रि के मौके पर चारों ओर बम-बम भोले के जयकारे सुनाई देते हैं. सदाशिव भोलेनाथ से जुड़ी ऐसी ही एक पौराणिक कहानी, हम आप तक पहुंचा रहे हैं. क्या आपको पता है कि भगवान शिव और पार्वती की शादी का गवाह कौन सा पर्वत बना था? कौन सी वह भूमि थी, जहां पर शिव और पार्वती ने सात फेरे लिए थे?
आज हम महादेव के इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जानेंगे. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां तीन युगों से अखंड ज्योति जल रही है. जिसके दर्शन मात्र से ही मानव को मोक्ष की प्राप्ति होती है. हम बात कर रहे हैं त्रियुगीनारायण मंदिर की.
देवों के देव महादेव सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में गिने जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव देश दुनिया के हर कण-कण में विद्यमान हैं. यही वजह है कि महाशिवरात्रि का सनातन परंपराओं में एक विशेष महत्व है. केदारघाटी की तलहटी में स्थित पवित्र त्रियुगीनारायण मंदिर कई पौराणिक मान्यताओं को समेटे हुए है. इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है.
तीन युगों से जल रही है अखंड ज्योति
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में शिव और पार्वती का पाणिंग्रहण संस्कार भगवान नारायण की उपस्थिति में हुआ था. मंदिर में शादी की साक्षी रही अग्नि तीन युगों से प्रज्वल्लित है. कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के समक्ष विवाह के फेरे लिए थे. मंदिर में स्थित हवन कुंड की अग्नि में घृत, जौ, तिल और काष्ठ अर्पित किया जाता है. यहां की भस्म बहुत पवित्र मानी जाती है. मान्यता है कि इस मंदिर के हवन कुण्ड की राख भक्तों के वैवाहिक जीवन को सुखी रहने का आशीर्वाद देती है.
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