पिथौरागढ़:उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले जनजातीय समुदाय के लोग अपनी विशेष संस्कृति, वेशभूषा और खास रहन-सहन के लिए तो जाने ही जाते हैं. वहीं, इनके खान-पान के तौर-तरीके भी एकदम जुदा है. जिले के दारमा, व्यास और चौदास घाटी समेत मुनस्यारी के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले भोटिया, शौका और अनवाल समुदाय के लोग भोजन के लिए खास तौर पर तैयार किये जाने वाले सूखे मीट का इस्तेमाल करते हैं.
यहां भेड़ और बकरियों का मीट सुखाकर रख दिया जाता है, जिसका इस्तेमाल लोग सर्दियों के मौसम में करते हैं. सूखे मीट की कीमत ताजा मीट के मुकाबले 3 गुना अधिक होती है. बावजूद इसके सर्दियों के मौसम में सूखे मीट का प्रयोग बहुतायत में किया जाता है.
सूखा मीट 3 गुना महंगा:असल में उच्च हिमालयी इलाकों में सूखा मीट रखने की परम्परा है. सूखा मीट ताजा मीट के मुकाबले काफी मंहगा होता है. 1 किलो सूखे मीट की कीमत 15 सौ रुपया है. इन इलाकों के लोग भेड़ और बकरियों के मीट को 6 महीनों तक सुखाकर रखते हैं, फिर उसे खाते हैं. सुखाया गया मीट खराब नहीं होता और इसका इस्तेमाल लम्बे समय तक किया जा सकता है.
सूखा मीट रखने की परंपरा:उच्च हिमालयी इलाकों में कई गांव ऐसे हैं जहां लोग मीट को सुखाकर साल भर उसका प्रयोग करते हैं. दारमा घाटी के उर्थिंग में सूखा मीट बेचने वाले मानसिंह बताते हैं कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लोग ठंड से बचने के लिए मांसाहार का प्रयोग करते हैं. खास तौर पर सूखा मीट रखने की परंपरा यहां पुराने समय से चली आ रही है.