रुद्रप्रयाग: देवभूमि उत्तराखंड का नैसर्गिक सौन्दर्य बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है. जिसे देखने हर साल देश-विदेश से सैलानी पहुंचते हैं. वहीं लाॅकडाउन में तुंगनाथ घाटी के ग्रामीण घरों में न रहते हुए ट्रैकिंग स्थलों का भ्रमण कर रहे हैं और प्रकृति से रूबरू हो रहे हैं.
गौर हो कि तुंगनाथ घाटी के विभिन्न गांवों के आठ सदस्यीय दल विसुणीताल का भ्रमण करके लौटा है. दल विसुणीताल ताल की खूबसूरती से रूबरू हुआ. इसके अलावा दल ने पैदल मार्ग का भी जायजा लिया. इससे पूर्व भी एक दल विसुणीताल का भ्रमण करके लौटा था.
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केदारघाटी में कई ऐसे ट्रैकिंग स्थल हैं, जिनकी अपनी एक विशेषता है. इन ट्रैकिंग रूटों की जानकारी केदारघाटी के लोगों को है और वे गाइड के तौर पर बाहरी प्रदेशों से आने वाले ट्रैकरों को ट्रैकिंग रूटों से रूबरू करवाते हैं, मगर इन दिनों कोरोना महामारी के कारण ट्रैकिंग रूटों में वीरानी छाई हुई है. ऐसे में स्थानीय लोग ही इन ट्रैकिंग रूटों का आनंद ले रहे हैं और रूटों का जायजा भी ले रहे हैं.
धार्मिक मान्यता है कि विसुणीताल का निर्माण भगवान विष्णु ने किया है. इस बार तुंगनाथ घाटी का आठ सदस्यीय दल चोपता-ताली-रौणी-भादणी-थौली होकर विसुणीताल पहुंचा. आठ सदस्यीय दल का मानना है कि हिमालयी क्षेत्रों में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश से सुरम्य मखमली बुग्यालों में हरियाली लौटने शुरू हो गयी है. यह ट्रैकिंग रूट सबसे लम्बा तथा कठिनाइयों से भरा है.
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इसलिए इस विसुणीताल पहुंचने के लिए तीन दिन का समय लगता है. आठ सदस्यीय दल में शामिल सदस्यों ने बताया कि चोपता-ताली-रौणी-भादणी तक का सफर बहुत कठिन है तथा इस पैदल ट्रैकिंग पर जंगली जानवरों का भय अधिक बना रहता है. पैदल रूट पर अनेक प्रकार के बेशकीमती फूलों के खिलने से प्रकृति के यौवन पर चार चांद लगने शुरू हो गये हैं.
उन्होंने बताया कि ताली भादणी के मध्य गुफाओं में रात्रि प्रवास किया जा सकता है. हिमालयी क्षेत्रों में निरन्तर बारिश होने से सुरम्य मखमली बुग्यालों में भी हरियाली उगने शुरू हो गयी है. जसवीर बजवाल ने बताया कि थौली से विसुणीताल के भू-भाग को प्रकृति ने संवारा है. विसुणीताल पहुंचने के लिए अदम्य साहस व प्रकृति से रूबरू होने का दृढ़ संकल्प होना जरूरी है. क्योंकि यह पैदल रूट बहुत कठिन है.