केदारनाथ: केदारनाथ धाम में आई आपदा के बाद से यहां के तापमान में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. पहले धाम में बर्फबारी और बारिश समय पर होने से तापमान सही रहता था और ग्लेशियर टूटने की घटनाएं सामने नहीं आती थी. वहीं अब कुछ सालों से धाम में ग्लेशियर चटकने की घटनाएं बार-बार सामने आ रही हैं. इसके साथ ही यहां के बुग्यालों को नुकसान पहुंचने से वनस्पति और जीव-जंतु भी विलुप्ति की कगार पर हैं. आपदा के बाद से केदारनाथ धाम में पर्यावरण को लेकर कोई कार्य नहीं किए जाने से पर्यावरण विशेषज्ञ भी भविष्य के लिए चिंतित नजर आ रहे हैं.
धाम में माॅस घास हो रही खत्म:केदारनाथ धाम में माॅस घास खत्म होती जा रही है, जिससे धाम की पहाड़ियां धीरे-धीरे खिसकनी शुरू हो गई हैं. बुग्यालों में की जा रही खुदाई, धाम में चल रहे पुनर्निर्माण कार्य और यहां फेंके जा रहे प्लास्टिक कचरे को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है. भैरवनाथ मंदिर, वासुकीताल और गरुड़चट्टी जाने के रास्ते से इस घास को रौंदा जाता है. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में माॅस घास को उगने में समय लगता है, क्योंकि यहां का तापमान बदलता रहता है.
10 सालों में केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य में आई तेजी:पर्यावरण विशेषज्ञ देवराघवेन्द्र बद्री ने कहा कि आपदा के 10 सालों में केदारनाथ धाम में पुनर्निर्माण कार्य तेजी से किए गए हैं. मानव गतिविधियों ने भी रफ्तार पकड़ी है. इसके साथ ही हेली सेवाओं में निरंतर वृद्धि हुई. इसके विपरीत हिमालय को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए. आज केदारनाथ धाम के तापमान में काफी परिवर्तन आ गया है. उन्होंने कहा कि कहा कि केदारनाथ धाम में पाई जाने वाली घास विशेष प्रकार की है. इसे वनस्पति विज्ञान में माॅस घास कहा जाता है. यह जमीन को बांधने का काम करती है. साथ ही यहां के ईको सिस्टम को भी सही रखती है.
विलुप्ति की कगार पर है हिमालयी पिका:बुग्यालों में पाया जाने वाला बिना पूंछ वाला चूहा, जिसे हिमालयी पिका कहा जाता है, यह भी कम ही देखने को मिल रहा है. इसका कारण यह है कि हिमालय के स्वास्थ्य पर मानव गतिवितियों का गहरा असर पड़ रहा है. हिमालय में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं. ये जड़ी-बूटियां हिमालयी पिका का भोजन होती हैं.