रुद्रप्रयाग: सुरम्य मखमली बुग्यालों में 6 महीने प्रवास करने वाले भेड़ पालकों का लाई मेला बड़े धूमधाम (Sheep keepers celebrated the lai fair with pomp) से मनाया गया. लाई मेला (lai fair) नीचे इलाकों में मनाया जाता है तथा लाई मेले के बाद भेड़ पालक फिर ऊंचाई वाले इलाकों की ओर चले जाते हैं. पहले लाई मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद की पांच गते को मनाए जाने की परंपरा थी. मगर वर्तमान समय में भेड़ पालकों की ओर से सुविधा अनुसार अलग-अलग तिथियों पर लाई मेला मनाया जा रहा है. लाई मेला शीत ऋतु आगमन का द्योतक (Lai fair signifies the arrival of winter) माना जाता है. पूर्व में लाई मेले के दिन ऊन व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों द्वारा ऊन का आदान-प्रदान किया जाता था. मगर धीरे-धीरे ऊन व्यवसाय में गिरावट आने के कारण भेड़ों की ऊन का आदान-प्रदान करने की परंपरा विलुप्त हो चुकी है.
6 माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों के दाती एवं लाई त्योहार मनाने की परंपरा युगों युगों की है. भेड़ पालकों की ओर से दाती त्योहार कुल पुरोहित द्वारा निर्धारित तिथि पर रक्षाबंधन के आस-पास मनाया जाता है. दाती त्योहार के दिन भेड़ पालकों के अराध्य देव क्षेत्रपाल, सिद्ववा व विधुवा तथा वन देवियों के पूजन के बाद भेड़ों के सेनापति की नियुक्ति की जाती है. लाई त्योहार में भेड़ों की ऊन की छटाई की जाती है.
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इन दिनों केदार घाटी सहित विभिन्न ऊंचाई वाले इलाकों में लाई मेला धूमधाम से मनाया जा रहा है. लाई मेले में ग्रामीण व भेड़ पालकों के परिजन भी बढ़-चढ़कर भागीदारी करते हैं. 6 माह विसुणीताल के निकट प्रवास करने वाले भेड़ पालक वीरेंद्र सिंह धीरवाण ने बताया कि लाई मेला मनाने की परंपरा युगों पूर्व की है. टिगंरी के बुग्यालों में 6 माह प्रवास करने वाले भेड़ पालक प्रेम भट्ट ने बताया कि भेड़ पालकों द्वारा लाई मेला निचले हिस्सों में मनाया जाता है तथा लाई मेले के बाद भेड़ पालक ऊंचाई वाले इलाकों की ओर अग्रसर हो जाते हैं तथा दीपावली के निकट गांव लौटने की परंपरा है.
6 माह कुलवाणी के बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालक विक्रम सिंह रावत ने बताया कि लाई मेले में सभी लोग बढ़-चढ़कर भागीदारी करते हैं तथा दाती त्योहार में सिर्फ भेड़ पालक ही शामिल होते हैं. वन विभाग के अनुभाग अधिकारी आनंद सिंह रावत ने बताया कि लाई मेले में भेड़ पालकों व ग्रामीणों में आपसी प्रेम व भाईचारा देखने को मिलता है. मदमहेश्वर घाटी विकास मंच अध्यक्ष मदन भट्ट ने कहा कि यदि प्रदेश सरकार भेड़ पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने की पहल करती है तो लाई मेला भव्य रूप ले सकता है और ऊन व्यवसाय में फिर इजाफा हो सकता है.
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कालीमठ घाटी निवासी बलवंत रावत ने बताया कि भेड़ पालकों का जीवन किसी साधना से कम नहीं है. क्योंकि भेड़ पालक अनेक परेशानियों का सामना करने के बाद भी भेड़ पालन व्यवसाय को जीवित रखने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं. वहीं, अरविंद राणा ने बताया कि पूर्व में लाई मेला एक निश्चित तिथि पर मनाया जाता था, मगर अब भेड़ पालक अपने सुविधा के अनुसार अलग-अलग तिथियों पर लाई मेला मना रहे हैं.