रुद्रप्रयाग: संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार कालिदास की जन्मस्थली कविल्ठा गांव पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. क्षेत्र में जल विद्युत परियोजना के निर्माण से कविल्ठा के साथ ही तीन अन्य गांव खतरे में हैं. इस कार्य की वजह से ग्रामीणों के भवनों पर मोटी-मोटी दरारें पड़ गई हैं. बारिश होने पर घर ढहने के डर से ग्रामीण अपने घरों को छोड़कर भाग जाते हैं. क्षेत्र के हालात को देखते हुए ग्रामीण काफी परेशान हैं.
सुरंग बनी आफत
केदारघाटी के कालीमठ घाटी में आठ मेगावाट की जल विद्युत परियोजना का निर्माण कार्य चल रहा है. कविल्ठा गांव के नीचे दो किमी लंबी सुरंग बन रही है. इसी वजह से कविल्ठा, कोटमा, खोन्नू गांव पर खतरा मंडरा रहा है. इन गांवों में 400 से अधिक परिवार रहते हैं, जो सुरंग निर्माण कार्य से परेशान हैं. ग्रामीणों का कहना है कि साल 1992 से भूकंप और आपदाओं के दौर से जूझ रही यहां की जनता को हमेशा बारिश में कोई न कोई अप्रिय घटना का सामना करना पड़ता है. वहीं इन परियोजनाओं के निर्माण कार्य की वजह से अब उनके घर कभी भी ढह सकते हैं.
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मनमाने तरीके से हो रहा काम
ग्रामीणों का आरोप है कि जल विद्युत निगम की ओर से जिस कंपनी को कार्य सौंपा गया है, वो मनमाने तरीके से कार्य कर रही है. सुरंग निर्माण का मलबा ग्रामीणों के खेतों में डाला जा रहा है, जबकि गांव के नीचे ही विस्फोटक पदार्थ रखे हुए हैं, जो कभी भी ग्रामीणों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं. ग्रामीण सदानंद का कहना है कि यहां सभी ग्रामीण डर के साये में जी रहे हैं. वो शासन-प्रशासन के सामने गुहार लगाते-लगाते थक चुके हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है.
शिकायत करने पर धमाकाया जाता है
प्रभावित ग्रामीणों की मानें तो परियोजना के निर्माण कार्य में शुरूआत से सवाल उठते रहे हैं. इस कार्य की वजह से पहले क्षेत्र के लोगों ने भूकंप के झटकों को महसूस किया और अब ग्रामीणों के सामने बेघर होने की नौबत आ गई है. सुरंग निर्माण में विस्फोट का इस्तेमाल होने से आवासीय भवनों में मोटी-मोटी दरारें पड़ी हैं. शिकायत करने पर ग्रामीणों को धमकाया जा रहा है. सुरक्षा दीवारों पर कंपनी की ओर से रेत की जगह मिट्टी का प्रयोग किया जा रहा है.