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'मिनी स्विटजरलैंड' चोपता में अतिक्रमण, प्रशासन के लिए बना चुनौती

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Published : Jan 14, 2021, 8:34 PM IST

मिनी स्विटजरलैंड चोपता के बुग्यालों से आज तक अतिक्रमण नहीं हट पाया है. प्रशासन अतिक्रमणकारियों को पूर्व में ही नोटिस जारी कर चुका है.

Removal of encroachment in Mini Switzerland Chopta
चोपता में अतिक्रमण हटाना प्रशासन के लिए बना चुनौती

रुद्रप्रयाग:मिनी स्विटजरलैंड के नाम से विश्व विख्यात चोपता के सुरम्य मखमली बुग्यालों से अवैध अतिक्रमण हटाना प्रशासन व वन विभाग के लिए चुनौती बन गया है. अगर समय रहते तुंगनाथ घाटी के विभिन्न यात्रा पड़ावों पर से अवैध अतिक्रमण नहीं हटाया गया तो मखमली बुग्यालों का अस्तित्व समाप्त होने के साथ ही स्थानीय पर्यटन व्यवसाय भी खासा प्रभावित हो सकता है. भले ही कुछ दिनों पहले वन विभाग ने तीन ढाबों को तोड़कर इस मामले में इतिश्री कर दी हो, मगर शेष बुग्यालों पर से अब भी अतिक्रमण कब हटेगा यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है.

जिला प्रशासन भले ही ईडीसी के गठन का आश्वासन स्थानीय व्यापारियों व बेरोजगारों को देता आ रहा है. मगर स्थानीय युवाओं के भविष्य को देखते हुए कब ईडीसी का गठन होगा. यह भविष्य के गर्भ में है. बता दें कि तुंगनाथ घाटी के आंचल में बसे चोपता सहित विभिन्न यात्रा पड़ावों को मिनी स्विटजरलैंड के नाम से जाना जाता है.

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प्रति वर्ष लाखों सैलानी तुंगनाथ घाटी पहुंच कर प्रकृति के अनूठे वैभवों से रूबरू होते हैं. पिछले 7-8 वर्षों से स्थानीय युवाओं की आड़ में बाहरी पूंजीपतियों ने तुंगनाथ घाटी के सुरम्य मखमली बुग्यालों में अवैध अतिक्रमण कर होटलों, ढाबों व टैन्टों का संचालन करना शुरू कर दिया है. जिससे बुग्यालों की सुंदरता धीरे-धीरे गायब होती जा रही है.

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लगभग तीन वर्ष पूर्व जिला प्रशासन ने तुंगनाथ घाटी से एक सप्ताह के अन्तर्गत अवैध अतिक्रमण हटाने का फरमान जारी किया था. जिससे कुछ लोगों ने बुग्यालों में हुए अवैध अतिक्रमण तो हटा दिया था, मगर बाहरी पूंजीपतियों को अतिक्रमण यथावत रहने से जिला प्रशासन व वन विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई थी. विगत दिनों वन विभाग ने लगभग चार दर्जन से अधिक व्यापारियों को नोटिस थमा कर बुग्यालों में हुए अतिक्रमण को हटाने के निर्देश जारी करने के साथ ही 22 दिसंबर को तीन ढाबों को भारी नुकसान पहुंचाया था, मगर दो सप्ताह से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी अन्य अतिक्रमणकारियों पर कार्रवाई न होने से वन विभाग की कथनी व करनी में जमीन-आसमान का फर्क साफ झलक रहा है.

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