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उत्तराखंड में द्वापर युग से जुड़ी है पांडव नृत्‍य की अनोखी परंपरा, जानें खासियत

उत्तराखंड पूरी दुनिया अपनी अलग संस्कृति और लोक कलाओं के अलग पहचान रखता है. बदले वक्त के साथ उत्तराखंड में आज भी अपनी संस्कृति को नहीं खोया है. इसीलिए यहां सदियों पुरानी परंपराएं आज भी जीवित हैं. इन्हीं में से एक हैं, पांडव नृत्य. यह अनोखी परंपरा द्वापर युग से जुड़ी है.

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Published : Nov 26, 2022, 8:19 PM IST

रुद्रप्रयाग: भरदार क्षेत्र के ग्राम पंचायत दरमोला के राजस्व गांव तरवाड़ी में चल रहे पांडव नृत्य में पांडवों के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए गए, जिसके बाद पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ नृत्य किया. 28 नवंबर को फल वितरण के साथ पांडव नृत्य का समापन किया जाएगा. पांडव नृत्य देखने के लिए दूर-दराज क्षेत्रों से बड़ी संख्या में भक्तों के साथ ही धियाणियां पहुंची हुई थी.

बीती 4 नवंबर से ग्राम पंचायत दरमोला के तरवाड़ी गांव में चल रहे पांडव नृत्य के दौरान शनिवार को नौगरी का कौथिग का आयोजन किया गया. सुबह पुजारी कीर्ति प्रसाद डिमरी ने बदरीविशाल, नागराजा, तुंगनाथ, हीत देवता और चामुंडा मां के देव निशानों की विशेष पूजा अर्चना के साथ भोग लगाया. कौथिग को लेकर स्थानीय लोग सुबह से ही पांडव पश्वों के लिए विभिन्न तरह के पकवान बनाने में जुट गए थे.

उत्तराखंड में पांडव लीला
पढ़ें- रुद्रप्रयाग: पांडवों ने शस्त्रों के साथ किया नृत्य, नौगरी का कौथिग देखने उमड़ी भीड़

पांडव पश्वा ने वैसे तो पूरे गांव का भ्रमण करना था, लेकिन समय के कमी के चलते पांडव चौक पर ही पांडवों के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए, जिसके लिए सभी ग्रामीणों के घरों से सामग्री एकत्रित की गई. पांडव के लिए बनाए गए पकवान सर्वप्रथम भोग बदरी विशाल भगवान को लगाया, उसके बाद ही पांडव पश्वों ने ग्रहण किया. इस दौरान यहां हवन भी किया किया गया.

मान्यता है कि जब पांडव अज्ञातवास के लिए गए थे, तो उस समय उन्होंने विभिन्न गांवों में भीक्षा मांगकर ही अपना पेट भरा थाय आज भी लोग इस परंपरा की संस्कृति को जीवित रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. दोपहर दो बजे बाद पांडव पश्वों ने अपने अस्त्र-शस्त्रों के साथ ढोल दमाऊ की थाप पर नृत्य शुरू किया, जो काफी देर तक भक्तों के आकर्षण का केंद्र बना रहा. अंत में भक्तों को प्रसाद वितरण भी किया गया. इस गांव में सदियों से परंपरा चली आ रही है.

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