रुद्रप्रयाग: अलकनंदा-मंदाकिनी नदी के संगम स्थल में देव निशानों और पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा-शुद्धिकरण की गई. साथ ही भरदार क्षेत्र के दरमोला गांव में पांडव लीला शुरू हो गई है. मान्यता है कि स्वर्ग जाते समय पांडव अलकनंदा व मंदाकिनी नदी किनारे से होकर स्वर्गारोहणी गए थे. जहां से पांडव गुजरे, उन स्थानों पर विशेष रूप से पांडव लीला आयोजित होती है.
गढ़वाल क्षेत्र में हर साल नवंबर माह से लेकर फरवरी माह तक पांडव नृत्य का आयोजन होता है. प्रत्येक गांवों में पांडव नृत्य के आयोजन की अलग-अलग परंपराएं हैं. कहीं, पांच तो कहीं दस वर्षों बाद पांडव नृत्य का आयोजन होता है, लेकिन जिले का भरदार क्षेत्र की ग्राम पंचायत दरमोला एकमात्र ऐसा गांव है, जहां प्रत्येक वर्ष एकादशी पर्व पर देव निशानों के साथ मंदाकिनी व अलकनंदा के तट पर गंगा स्नान के साथ पांडव नृत्य शुरू करने परंपरा है.
इस गांव में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. एकादशी की पूर्व संध्या पर दरमोला, तरवाड़ी, स्वीली, सेम के ग्रामीण भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, नागराजा, देवी, हित, ब्रहमडुंगी, भैरवनाथ समेत कई नेजा-निशान व गाजे बाजों के साथ गंगा स्नान के लिए संगम तट पर पहुंचे, जहां पर जागरण एवं देव निशानों की चार पहर की पूजा अर्चना की गई. एकादशी पर्व पर आज तड़के सभी देव निशानों के गंगा स्नान कराने के बाद पूजा-अर्चना एवं हवन किया गया.
इसके बाद देव निशानों को गांव में ले जाकर पांडव नृत्य का आयोजन शुरु किया गया. इस आयोजन में मुख्य रूप से पांडवों के बाणों एवं अस्त्र-शस्त्रों की पूजा-अर्चना की भी अनूठी परंपरा है. जानकार बताते हैं कि स्वर्ग जाने से पहले भगवान कृष्ण के आदेश पर पांडव अपने अस्त्र-शस्त्र पहाड़ में छोड़कर मोक्ष के लिए स्वर्गारोहणी की ओर चले गए थे।. जिन स्थानों पर यह अस्त्र छोड़ गए थे, उन स्थानों पर विशेष तौर से पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है. इन्हीं अस्त्र-शस्त्रों के साथ पांडव नृत्य करते हैं.