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पांडव सेरा में आज भी अपने आप उगती है धान की फसल, ये है पौराणिक कथा - Rudraprayag Tourism

पाण्डव सेरा (Rudraprayag Pandava Sera) में आज भी पांडवों के अस्त्र शस्त्र पूजे जाते हैं, जबकि द्वापर युग में पांडवों की ओर से रोपित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है तथा धान की फसल उगने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है. जिसे देखने के लिए सैलानी लालायित रहते हैं.

pandav sera
पांडव सेरा

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Published : Jul 10, 2022, 8:16 AM IST

Updated : Jul 10, 2022, 8:24 AM IST

रुद्रप्रयाग: मदमहेश्वर-पांडव सेरा-नन्दीकुंड 25 किमी पैदल मार्ग के भूभाग को प्रकृति ने अपने दिलकश नजारों से सजाया है. इस भूभाग से प्रकृति को अति निकट से देखा जा सकता है. पाण्डव सेरा (Rudraprayag Pandava Sera) में आज भी पांडवों के अस्त्र शस्त्र पूजे जाते हैं, जबकि द्वापर युग में पांडवों की ओर से रोपित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है तथा धान की फसल उगने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है. यहां पांडवों द्वारा निर्मित सिंचाई गूल आज भी पांडवों के हिमालय आगमन की साक्ष्य है और सिंचाई गूल देखकर ऐसा आभास होता है कि गूल का निर्माण सिंचाई के मानकों के अनुरूप किया गया है.

लोक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ धाम में जब पांचों पाण्डवों को भगवान शंकर के पृष्ठ भाग के दर्शन हुए तो पाण्डवों ने द्रौपदी सहित मदमहेश्वर धाम होते हुए मोक्षधाम बदरीनाथ के लिए गमन किया. मदमहेश्वर धाम में पांचों पाण्डवों के अपने पूर्वजों के तर्पण करने के साक्ष्य आज भी एक शिला पर मौजूद हैं. मदमहेश्वर धाम से बद्रीका आश्रम गमन करने पर पांचों पाण्डवों ने कुछ समय पाण्डव सेरा में प्रवास किया तो यह स्थान पाण्डव सेरा के नाम से विख्यात हुआ. पाण्डव सेरा में आज भी पाण्डवों के अस्त्र-शस्त्र पूजे जाते हैं तथा पाण्डवों द्वारा सिंचित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है और पकने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है. पाण्डव सेरा में पाण्डवों द्वारा निर्मित सिंचाई नहर विद्यमान है तथा सिंचाई नहर में जल प्रवाह निरन्तर होता रहता है. पाण्डव सेरा से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित नन्दीकुण्ड में स्नान करने से मानव का अन्तः करण शुद्ध हो जाता है.

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पाण्डव सेरा में आज भी पाण्डवों के अस्त्र-शस्त्र पूजे जाते हैं तथा पाण्डवों द्वारा सिंचित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है और पकने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है. पाण्डव सेरा में पाण्डवों द्वारा निर्मित सिंचाई नहर विद्यमान है तथा सिंचाई नहर में जल प्रवाह निरन्तर होता रहता है. पाण्डव सेरा से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित नन्दीकुण्ड में स्नान करने से मानव का अन्तः करण शुद्ध हो जाता है.

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यह भूभाग बरसात के समय ब्रह्मकमल सहित अनेक प्रजाति के फूलों से आच्छादित रहता है. प्रकृति प्रेमी अभिषेक पंवार ने बताया कि मदमहेश्वर धाम से लगभग 20 किमी की दूरी पर पाण्डव सेरा तथा 25 किमी की दूरी पर नन्दीकुण्ड विराजमान है. उन्होंने बताया कि मदमहेश्वर धाम से धौला क्षेत्रपाल, नन्द बराड़ी खर्क, काच्छिनी खाल, पनोर खर्क, द्वारीगाड, पण्डो खोली तथा सेरागाड पड़ावों से होते हुए पाण्डव सेरा पहुंचा जा सकता है. प्रकृति प्रेमी भूपेन्द्र पंवार, अंकुश पंवार, लोकेश पंवार, अजय पंवार ने बताया कि मदमहेश्वर से पाण्डव सेरा-नन्दीकुण्ड तक फैले भूभाग को प्रकृति ने अपने दिलकश नजारों से सजाया है.

इसलिए इस भूभाग में पर्दापण करने से भटके मन को अपार शान्ति मिलती है. नन्दीकुण्ड में भगवती नन्दा के मन्दिर में पूजा अर्चना करने से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं. मदमहेश्वर-पाण्डव सेरा-नन्दीकुण्ड पैदल ट्रैक पर सभी संसाधन साथ ले जाने पड़ते हैं तथा पहली बार ट्रेकिंग करने वाले को गाइड के साथ ही ट्रेकिंग करनी चाहिए. मदमहेश्वर-पाण्डव सेरा-नन्दीकुण्ड के आंचल में बसे भूभाग को बार-बार निहारने का मन करता है.

Last Updated : Jul 10, 2022, 8:24 AM IST

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