रुद्रप्रयाग: मदमहेश्वर-पांडव सेरा-नन्दीकुंड 25 किमी पैदल मार्ग के भूभाग को प्रकृति ने अपने दिलकश नजारों से सजाया है. इस भूभाग से प्रकृति को अति निकट से देखा जा सकता है. पाण्डव सेरा (Rudraprayag Pandava Sera) में आज भी पांडवों के अस्त्र शस्त्र पूजे जाते हैं, जबकि द्वापर युग में पांडवों की ओर से रोपित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है तथा धान की फसल उगने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है. यहां पांडवों द्वारा निर्मित सिंचाई गूल आज भी पांडवों के हिमालय आगमन की साक्ष्य है और सिंचाई गूल देखकर ऐसा आभास होता है कि गूल का निर्माण सिंचाई के मानकों के अनुरूप किया गया है.
लोक मान्यताओं के अनुसार केदारनाथ धाम में जब पांचों पाण्डवों को भगवान शंकर के पृष्ठ भाग के दर्शन हुए तो पाण्डवों ने द्रौपदी सहित मदमहेश्वर धाम होते हुए मोक्षधाम बदरीनाथ के लिए गमन किया. मदमहेश्वर धाम में पांचों पाण्डवों के अपने पूर्वजों के तर्पण करने के साक्ष्य आज भी एक शिला पर मौजूद हैं. मदमहेश्वर धाम से बद्रीका आश्रम गमन करने पर पांचों पाण्डवों ने कुछ समय पाण्डव सेरा में प्रवास किया तो यह स्थान पाण्डव सेरा के नाम से विख्यात हुआ. पाण्डव सेरा में आज भी पाण्डवों के अस्त्र-शस्त्र पूजे जाते हैं तथा पाण्डवों द्वारा सिंचित धान की फसल आज भी अपने आप उगती है और पकने के बाद धरती के आंचल में समा जाती है. पाण्डव सेरा में पाण्डवों द्वारा निर्मित सिंचाई नहर विद्यमान है तथा सिंचाई नहर में जल प्रवाह निरन्तर होता रहता है. पाण्डव सेरा से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित नन्दीकुण्ड में स्नान करने से मानव का अन्तः करण शुद्ध हो जाता है.
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