रुद्रप्रयाग:पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मदमहेश्वर धाम के शीर्ष पर बूढ़ा मदमहेश्वर मंदिर है. इसके तीन ओर का भूभाग मखमली बुग्यालों और एक ओर का भूभाग भोजपत्रों से आच्छादित है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में ऐड़ी, आछरियों और वन देवियों का वास माना जाता है. भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर की पूजा करने का विधान है.
बूढ़ा मदमहेश्वर के ऊपरी हिस्से से कई पैदल ट्रैक निकलते हैं, जिससे साहसिक पर्यटक समय-समय पर पदयात्रा कर प्रकृति के अनमोल खजाने से रूबरू होते हैं.
बता दें कि, मदमहेश्वर धाम से करीब दो किमी की दूरी तय करने के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर धाम पहुंचा जाता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम से चौखंबा व हिमालय की चमचमाती श्वेद चादर को अति निकट से देखा जा सकता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम के तीन ओर सुरम्य मखमली बुग्यालों का रुपहला विस्तार है, जिसे स्पर्श करने पर नर्म नाजुक मखमली घास का एहसास होता है. बूढ़ा मदमहेश्वर के तीन ओर फैले बुग्यालों में समय-समय पर ऐड़ी, आछरियां और वन देवियां नृत्य बिहार करती हैं.
बूढ़ा मदमहेश्वर से मदमहेश्वर घाटी की सैकड़ों फीट गहरी खाइयों व असंख्य पर्वत श्रृंखलाओं को दृष्टिगोचर करने से मानव का अंत करण शुद्ध हो जाता है. बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में बरसात ऋतु में विभिन्न प्रजाति के पुष्प खिलने से ऐसा आभास होता है कि संपूर्ण इंद्र लोक इस धरती पर उतर आया हो. भगवान मदमहेश्वर की पूजा-अर्चना के बाद बूढ़ा मदमहेश्वर धाम में भी पूजा करने का विधान है. बूढ़ा मदमहेश्वर व चैखंबा के मध्य पनपतियां और कांचीनटिड़ा पर्वत से कई पैदल मार्ग तो हैं, मगर इन पर पैदल सफर करना बड़ा जोखिम भरा है.