उत्तराखंड

uttarakhand

रुद्रप्रयाग: माता मनणामाई के दर्शन से होती है सभी मनोकामनाओं की पूर्ति

By

Published : Oct 11, 2021, 8:46 AM IST

मद्महेश्वर घाटी के चौखंबा की तलहटी में बसा मनणामाई तीर्थ आदिशक्ति भगवती दुर्गा की तपस्थली माना जाता है. भगवती मनणामाई मद्महेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी के ग्रामीणों के साथ ही भेड़ पालकों की अराध्य देवी माना जाती हैं.

mannamai
mannamai

रुद्रप्रयाग:मद्महेश्वर घाटी के रांसी गांव से करीब 39 किमी और कालीमठ घाटी के चौमासी गांव से करीब 32 किमी दूर चौखंबा की तलहटी में बसा मनणामाई तीर्थ आदिशक्ति भगवती दुर्गा की तपस्थली माना जाता है. केदारखंड में इस तीर्थ की महिमा का वर्णन रम्भ मनणा के नाम से किया गया है. भगवती मनणामाई मद्महेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी के ग्रामीणों के साथ ही भेड़ पालकों की अराध्य देवी माना जाती हैं. मनणामाई तीर्थ में हर व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होने से यह तीर्थ मनणामाई तीर्थ के नाम से पूजित है. लेकिन इस तीर्थ में व्यवस्थाएं न होने से श्रद्धालु खासे परेशान रहते हैं. ऐसे में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने सरकार से मनणामाई तीर्थ के विकास की मांग की है.

बता दें कि, मनणामाई तीर्थ चैखंबा से प्रवाहित होने वाली मदानी नदी के किनारे सुरम्य मखमली बुग्यालों के मध्य बसा है. मनणामाई तीर्थ को प्रकृति ने अपने वैभवों का भरपूर दुलार दिया है. वर्षा ऋतु या फिर शरद ऋतु में मनणामाई तीर्थ के चारों तरफ का भूभाग अनेक प्रजाति के पुष्पों से सुसज्जित रहता है. केदारखंड में वर्णित है कि कलियुग में जो मनुष्य भगवती मनणामाई के दर्शन या स्मरण करेगा, उसे अखिल कामनाओं व अर्थों की पूर्ति होगी. महाकवि कालिदास ने भी मनणामाई तीर्थ की महिमा का गुणगान गहनता से किया है. मनणामाई तीर्थ के चहुंमुखी विकास में केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग का सेंचुरी वन अधिनियम बाधक बना हुआ है. इसलिए मनणामाई तीर्थ पहुंचने के लिए पैदल मार्ग बहुत ही विकट है.

अगर केदारनाथ वन्यजीव प्रभाग रांसी-मनणामाई, चौमासी-मनणामाई पैदल मार्गों को विकसित करने की कवायद करता है कि मनणामाई तीर्थ पहुंचने वाले तीर्थ यात्रियों के आवागमन में वृद्धि होगी और स्थानीय तीर्थाटन व्यवसाय में इजाफा होगा. दो बार मनणामाई तीर्थ की यात्रा कर चुके गैड़ निवासी शंकर सिंह पंवार ने बताया कि पटूड़ी से मनणामाई धाम तक पैदल मार्ग बहुत ही विकट है और पैदल मार्ग पर भेड़ पालकों के टेंटों पर आसरा लेना पड़ता है.

राकेश्वरी मंदिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि प्रति वर्ष रांसी गांव से मनणामाई तीर्थ तक लोकजात यात्रा का आयोजन किया जाता है. मगर पैदल मार्ग पर संसाधन न होने से कम ही लोग लोकजात यात्रा में शामिल होते हैं. मनणामाई धाम पहुंचने के लिए मद्महेश्वर घाटी के रांसी गांव से सनियारा, पटूड़ी, थौली, शीला समुद्र, कुलवाणी यात्रा पड़ावों को पार करने के बाद लगभग दो दिन में मनणामाई धाम पहुंचा जाता है. इसके अलावा कालीमठ घाटी के चैमासी गांव से खाम होते हुए मनणामाई धाम पहुंचा जा सकता है.

पढ़ें:मां भद्रकाली की प्रतिमा को मंदिर में किया स्थापित, श्रद्धालुओं ने की सुख-समृद्धि की कामना

प्रधान संगठन ब्लॉक अध्यक्ष सुभाष रावत, संरक्षक संदीप पुष्वाण, मीडिया प्रभारी योगेन्द्र नेगी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष त्रिलोक नेगी, कनिष्ठ प्रमुख शैलेन्द्र कोटवाल, प्रधान चौमासी मुलायम सिंह तिन्दोरी ने कहा कि मनणामाई तीर्थ को जोड़ने वाले दोनों पैदल मार्ग बहुत ही विकट हैं और मदानी नदी में पुल न होने से नदी का जल स्तर बढ़ने से श्रद्धालुओं को तीन किमी की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है. इसके साथ ही मनणामाई तीर्थ में भक्तों को रात्रि प्रवास के लिए धर्मशाला तो है. मगर धर्मशाला की क्षमता कम होने से तीर्थयात्रियों को खुले आसमान में रात काटनी पड़ती है. इसलिए दोनों पैदल मार्गों को विकसित करने, पैदल मार्ग पर प्रतिक्षालय निर्माण, मदानी नदी में पुल निर्माण और मनणामाई तीर्थ में धर्मशाला निर्माण के लिए केंद्र व राज्य सरकार और वन मंत्रालय को ज्ञापन भेजकर समस्याओं के निराकरण की पहल की जाएगी.

भेड़ पालकों की अराध्य देवी: मनणामाई भेड़ पालकों की अराध्य देवी मानी जाती हैं. पूर्व में जब भेड़ पालक छह माह बुग्यालों के प्रवास से वापस लौटते थे तो भगवती मनणामाई की डोली साथ लेकर अपने गांव वापस आते थे. धीरे-धीरे भेड़ पालन व्यवसाय में गिरावट आने लगी. इसके बाद भगवती मनणामाई की डोली राकेश्वरी मंदिर रांसी में तपस्यारत रहने लगी. अब रांसी के ग्रामीणों द्वारा प्रति वर्ष सावन माह में भगवती मनणामाई की डोली राकेश्वरी मन्दिर रांसी से लगभग 32 किमी दूर मनणामाई धाम पहुंचाकर पूजा-अर्चना की जाती है. पूजा-अर्चना के बाद मनणामाई की डोली को दोबारा राकेश्वरी मन्दिर रांसी गांव में विराजमान किया जाता है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details