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लॉकडाउन में बंजर पड़ी जमीन पर उगाया 'सोना', गांवभर में हो रही तारीफ - rudraprayag news

लाॅकडाउन के समय में रुद्रप्रयाग जिले के एक गांव में आचार्य पदम ने बंजर पड़ी जमीन पर खेती कर के कई तरह की सब्जियां उगाई हैं. उनकी इस मेहनत से सालों से बंजर पड़े खेत खलियानों में रौनक लौट आई है. साथ ही ग्रामीण जनता उसके प्रयासों की सराहना भी कर रही है.

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बंजर जमीन को बनाया हरा-भरा.

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Published : May 22, 2020, 10:19 PM IST

रुद्रप्रयाग: लाॅकडाउन के समय में जिले के एक गांव में एक व्यक्ति बंजर पड़ी जमीन पर खेती कर के कई तरह की सब्जियां उगा रहा है. उसकी इस मेहनत से सालों से बंजर पड़े खेत खलियानों में रौनक लौट आई है. जनता उसके प्रयासों की सराहना भी कर रही है.

बंजर जमीन को बनाया हरा-भरा.

जनपद के अगस्त्यमुनि विकासखंड के बंगोली गांव निवासी आचार्य पदम लाॅकडाउन में मुहिम चला रहे हैं. उनकी यह मुहिम बंजर पड़ी जमीन को हरा-भरा करने की है. उनकी ओर से बंजर खेतों में साग-सब्जी की खेती की जा रही है. जहां एक ओर लाॅकडाउन में लोग परेशान होकर गांव की ओर लौट रहे हैं, वहीं, आचार्य पदम बंजर पड़ी जमीन में हरियाली लाने का काम कर रहे हैं. उनकी इस मेहनत से इन दिनों चारों ओर हरियाली छाई हुई है.

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ग्रामीण जनता उनके कार्य की मुरीद हो गई है. उन्होंने खेतों में हर प्रकार की सब्जी का उत्पादन किया है और रात-दिन खेतों में मेहनत कर रहे हैं. बंगोली गांव के पूर्व प्रधान गजेन्द्र सिंह ने कहा कि जो जमीन सालों से बंजर पड़ी थी, उसमें जी जान से मेहनत कर आचार्य पदम ने खेती कर सोना उगाया है. गांव के अन्य ग्रामीणों को भी उनसे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है. लाॅकडाउन में आचार्य पदम ने समय का सही प्रयोग किया है.

ग्रामीण जनता को सब्जी के लिए बाजारों में नहीं जाना पड़ रहा है. आचार्य पदम कहते हैं कि कोरोना महामारी में लोगों को पता चल चुका है कि गांव में रहने की क्या अहमियत होती है? शहरों से लोग गांवों की ओर रुख कर रहे हैं. जिन जमीनों को लोग छोड़कर चले गये थे. फिर से उसी जमीन पर खेती करने को मजबूर हो गए हैं. उन्होंने कहा कि जिन पूर्वजों ने खेती के जरिए उनका भरण पोषण किया, उस जमीन को बंजर छोड़ना सही नहीं है.

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जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवासी उत्तराखंड पहुंचने लगे हैं. ऐसे में सरकार की ओर से बेरोजगार लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए नये-नये तरीके निकाले जा रहे हैं. काश्तकार खेती और पशु-पालन से अपनी आजीविका चला सकते हैं. उन्होंने कहा कि जो काश्तकार बंजर खेतों को उपजाऊ बना रहे हैं, अन्य ग्रामीणों को भी उनसे सीख लेने की जरूरत है.

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