रुद्रप्रयाग: पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विख्यात भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली आज अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर से धाम के लिए रवाना होगी. भले ही डोली के धाम गमन के लिए अभी जिला प्रशासन से देव स्थानम बोर्ड को कोई गाइडलाइन तो नहीं मिली है.
हालांकि, पूर्व में हुई वार्ता के अनुसार, भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर से मंगोलचारी तक पैदल मार्ग से रवाना होगी और वहां पर परंपरा अनुसार सूक्ष्म समय में अर्घ्य लगने के बाद भगवान मदमहेश्वर की डोली वाहन से रवाना होकर प्रथम रात्रि प्रवास के लिए राकेश्वरी मन्दिर रांसी पहुंचेगी. रांसी गांव में भी दशकों से चली परंपरा अनुसार, भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली को ग्रामीणों द्वारा अर्घ्य अर्पित किया जाएगा.
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वहीं, देव स्थानम बोर्ड से मिली जानकारी के अनुसार, दस मई को भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली राकेश्वरी मंदिर रांसी से प्रस्थान कर अंतिम रात प्रवास के लिए गौंडार गांव पहुंचेगी और 11 मई को ब्रह्म बेला पर गौंडार गांव से प्रस्थान कर बनतोली, खटारा, नानौ, मैखम्भा, कूनचट्टी यात्रा पड़ावों से होते हुए धाम पहुंचेगी.
भगवान मदमहेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के धाम पहुंचने पर भगवान मदमहेश्वर के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए जाएंगे. भगवान मदमहेश्वर की डोली के ऊखीमठ से धाम पहुंचने और कपाट खुलने के अवसर पर प्रशासन द्वारा नियुक्त अधिकारी, कर्मचारी व हक-हकूकधारी ही शामिल हो सकते हैं और लॉकडाउन के नियमों का सख्ती से पालन करना होगा.
न्याय के देवता माने जाते हैं भगवान मदमहेश्वर
भगवान मदमहेश्वर को न्याय का देवता माना जाता है. भगवान मदमहेश्वर के दरबार में जो श्रद्धालु सच्ची श्रद्धा लेकर जाता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. भगवान मदमहेश्वर के स्वयंभू लिंग की प्राचीन कथा नेपाल के राजा यशोधवल से जुड़ी है. पूर्व में मंदिर समिति के 1939 के अधिनियम के अनुसार, मदमहेश्वर धाम की देखरेख व अन्य हक-हकूकधारियों का जिम्मा गौण्डार के ग्रामीणों का है, जिनका निर्वहन ग्रामीण सच्ची श्रद्धा व लगन से करते आ रहे हैं.