रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड में देवताओं के वृक्ष के रूप में पहचान रखने वाले पंया (पदम) खिलने लगा है. अब इस पेड़ की गिनती संरक्षित श्रेणी के वृक्षों में होने लगी है. मगर अब फिर से इसके खिलने से हिमालय और वन्य जीव-जंतुओं के लिए शुभ माना जा रहा है. पहाड़ों में समुद्र तल से चार हजार फीट की ऊंचाई में जो भी गांव हैं, वहां पंया के वृक्षों पर गुलाबी और सफेद कलर के फूल खिले हुए हैं. जिस पर मधुमक्खियों के झुंड इन वृक्षों पर मंडरा रहे हैं. वहीं पंया फूल खिलने पर पर्यावरणविदों ने भी खुशी जताई है.
मान्यता है कि यह नागराज का वृक्ष होता है. रोजेशी वंश के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम प्रुन्नस सीरासोइडिस(prunus cerasoides) है. हिंदी में इसका नाम पद्म या पदमख कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे बर्ड चेरी के नाम से जाना जाता है. लंबी आयु वाला यह पेड़ साल भर हरा-भरा रहता है. मवेशी इसकी घास नहीं खाते, लेकिन जो खाते हैं उस मवेशी के लिए यह पोष्टिक आहार माना जाता है. देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति से जुड़ा यह बहुत ही धार्मिक वृक्ष है. जो उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है. अतीत से ही हमारे पूर्वजों ने पंया वृक्ष पर गहन शोध कर इसके लाभों को मानव जीवन के कल्याण के लिए प्रयोग में लाया गया. पदम वृक्ष में औषधीय गुण भा पाए जाते हैं. इसकी पत्तियों के फूलों का विभिन्न प्रकार की औषधियां बनाने में प्रयोग किया जाता है.
पदम वृक्ष की एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि जिन महीनों में पहाड़ में वृक्षों पर फूल नहीं खिलते हैं, वहीं पदम के वृक्ष पर गुलाबी और सफेद कलर के फूल खिलते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा मधुमक्खियों को होता है. क्योंकि सर्दियों का समय मधुमक्खियों के भोजन के लिए काफी संघर्षमय होता है. कुदरत की ही देन रहती है जो पदम वृक्ष मधुमक्खियों की इस आवश्यकता की पूर्ति करता है. जिस कारण मधुमक्खियां पराग इकट्ठा कर पूरी सर्दियों का खाना तैयार कर लेती हैं. इसलिए इस वृक्ष को दिव्य वृक्ष कहा गया है.
वैज्ञानिकों की मानें तो विगत कई सालों से पदम वृक्ष जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है. यहां तक कि पदम वृक्ष विलुप्ति की कगार पर पहुंच गया है. कई स्थानों पर इसके वृक्ष सूख गए हैं. जहां कभी पदम होता था, वहां आज पदम देखने को नहीं मिलता है. तापमान के बढ़ने से पदम वृक्ष पर गहरा असर पड़ रहा है, जोकि बहुत ही चिंता का विषय है. पदम वृक्ष पहाड़ों के लोगों के लिए औषधीय गुणों के अलावा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है. उत्तराखंड पहाड़ी गांव में होने वाली महत्वपूर्ण पूजा अनुष्ठानों में पंया की लकड़ी, पत्ते और छाल का प्रयोग किया जाता है. इतना ही नहीं इन गांवों में होने वाली सुप्रसिद्ध पांडव लीला में प्रयोग होने वाले अस्त्र को पदम की लकड़ी से ही तैयार किया जाता है.
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पदम एक पवित्र वृक्ष है, जिसे स्वर्ग का वृक्ष माना गया है. पवित्र होने के कारण पंया की लकड़ी हर पूजा अनुष्ठान में प्रयोग की जाती है. वहीं पदम के फूलों से बना हुआ शहद पहाड़ों पर उच्च कोटि का माना जाता है. क्योंकि मधुमक्खियां पदम के फूलों से रस लेती हैं और यह रस पदम के औषधीय गुण शहद में तब्दील हो जाता है. इन दिनों पदम के पेड़ों पर मधुमक्खियों के झुंड मंडरा रहे हैं और पदम के फूलों का रस निकाल रहे हैं. साथ ही इस वृक्ष का वर्णन समय-समय पर लोक कलाकारों ने अपने गीतों के माध्यम से भी किया है.