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रुद्रप्रयाग के रांसी गांव में राम-रावण युद्ध के साथ पांच दिवसीय मेला संपन्न

पांच दिवसीय मेले का शुभारंभ पौराणिक जागरों से किया जाता है और पौराणिक जागरों के माध्यम से हरि के द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय तक विराजमान सभी देवी-देवताओं की स्तुति के माध्यम से क्षेत्र की खुशहाली व विश्व कल्याण की कामना की जाती है. आखिरी दिन राम-रावण युद्ध के साथ इस मेले को संपन्न किया जाता है.

Ransi village
Ransi village

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Published : Apr 15, 2022, 6:47 PM IST

रुद्रप्रयाग:मदमहेश्वर घाटी के रांसी गांव में बैसाखी मेला पांच दिनों तक मनाया जाता है. पांच दिनों तक चलने वाले मेले में अनेक परम्पराओं का निर्वहन किया जाता है. पांच दिवसीय बैसाखी पर्व आज 15 अप्रैल को शिव पार्वती नृत्य व राम रावण युद्ध के साथ समाप्त हो गया है. पांच दिवसीय मेले में हजारों ग्रामीणों ने प्रतिभाग कर पुण्य अर्जित किया.

राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि युगों से चली आ रही परम्परा के अनुसार पांच दिवसीय मेले में अनेक पौराणिक परम्पराओं के निर्वहन करने की रीति आज भी रासी गांव में जीवित है. शिक्षाविद भगवती प्रसाद भटट् ने बताया कि भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रासी गांव में बैसाखी पर्व पर लगने वाले पांच दिवसीय मेले में पौराणिक परम्पराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है.
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मन्दिर समिति के पूर्व सदस्य शिव सिंह रावत ने बताया कि पांच दिवसीय मेले का शुभारंभ पौराणिक जागरों से किया जाता है. पौराणिक जागरों के माध्यम से हरि के द्वार हरिद्वार से लेकर चौखम्बा हिमालय तक विराजमान सभी देवी-देवताओं की स्तुति के माध्यम से क्षेत्र की खुशहाली व विश्व कल्याण की कामना की जाती है.

चन्द्र सिंह राणा ने बताया कि मेले में मधु गंगा से गाडू घड़ा लाकर भगवती राकेश्वरी का जलाभिषेक कर विश्व शान्ति व समृद्धि की कामना की जाती है. हरेन्द्र खोयाल ने बताया कि पांच दिवसीय मेले में अखण्ड धूनी प्रज्ज्वलित कर रात्रि भर जागरण कर भगवती राकेश्वरी व भगवान मदमहेश्वर की स्तुति की जाती है. पूर्ण सिंह पंवार, प्रबल सिंह पंवार ने बताया कि मेले के समापन अवसर पर शिव पार्वती नृत्य मुख्य आकर्षण रहता है. बचन सिंह पंवार, मुकन्दी सिंह पंवार ने बताया कि राम रावण युद्ध के साथ मेले का समापन किया जाता है. जसपाल सिंह जिरवाण और अमर सिंह रावत ने बताया कि रांसी गांव में लगने वाले पांच दिवसीय मेले में धियाणियों व ग्रामीणों के बड़ी संख्या में प्रतिभाग करने से आत्मीयता झलकती है.

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