उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

Global Warming Effect: हिमालय दे रहा खतरे के संकेत, बदले मौसम चक्र का ग्लेशियरों पर पड़ा प्रभाव

पर्यावरणविदों ने माना है कि हिमालय से खतरे के संकेत मिल रहे हैं. उनका कहना है कि मौसम चक्र का ग्लेशियरों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है. बर्फबारी और बारिश कम होने से वैज्ञानिकों के साथ ही पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है.

Global Warming Effect
ग्लोबर वार्मिंग

By

Published : Feb 14, 2023, 10:52 AM IST

Updated : Feb 14, 2023, 1:51 PM IST

हिमालय दे रहा खतरे के संकेत

रुद्रप्रयाग: पहाड़ों में इस बार बर्फबारी और बारिश कम होने से पर्यावरणविद और वैज्ञानिक चिंतित हैं. पर्यावरणविदों की मानें तो हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी कम होने से एवलॉन्च की घटनाएं बढ़ जाती हैं. बारिश कम होने से प्राकृतिक जल स्रोत सूख जायेंगे. मौसम चक्र के गहरे प्रभाव से ग्लेशियर और वनस्पतियां गुजर रह हैं. जंगलों में लगने वाली आग पर रोकथाम करना भी मुश्किल हो जायेगा. ऐसे में माना जा रहा है कि हिमालय खतरे का संकेत दे रहा है.

हिमालय में कम हुई बर्फबारी: बता दें कि हिमालयी क्षेत्रों में उम्मीद के हिसाब से बर्फबारी नहीं हो रही हैय ना ही निचले क्षेत्रों में मौसम के अनुकूल बारिश हो रही है. यह भविष्य के लिए किसी अशुभ संकेत से कम नहीं है. पिछले वर्षों की बात करें तो वसंत पंचमी के बाद प्रकृति व काश्तकारों की फसलों में नव ऊर्जा का संचार होने लगता था. मगर इस बार मौसम के लगातार परिवर्तन होने से पर्यावरणविद और वैज्ञानिक खासे चिंतित हैं. इनके साथ ही काश्तकारों के माथे पर चिंता की लकीरें दिख रही हैं.

जलवायु परिवर्तन से गिरा जलस्तर: केदारघाटी में लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन से जल स्रोतों के जल स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. ऐसे में पेयजल संकट गहराने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है. केदारनाथ धाम की बात करें तो धाम में इस बार शीतकाल में सबसे कम बर्फबारी हुई है, जो प्रकृति, पर्यावरण के लिए शुभ नहीं है. बीते वर्ष अक्तूबर से अभी तक धाम में एक समय पर अधिकतम तीन फीट बर्फ ही गिर पाई है. जबकि पूरे सीजन में धाम में छह फीट तक बर्फ जमा रही, जिसमें चार फीट तक बर्फ ही अब मौजूद है.

हर तरफ पड़ेगी मौसम की मार: अगर आने वाले दिनों में और बर्फबारी नहीं हुई तो यह जमा बर्फ आने वाले एक सप्ताह में ही तेज धूप से पिघल जाएगी. इन हालातों में मार्च से ही यहां पहाड़ तपने शुरू हो जाएंगे. चोराबाड़ी सहित अन्य ग्लेशियर भी पिघलने लगेंगे. इससे पानी के साथ ही ठंडी हवाओं की कमी साफ महसूस होने लगेगी. फसलों पर तो इसका प्रभाव पड़ेगा ही.

पहाड़ियों को नहीं मिली बर्फ की खुराक: समुद्र तल से 11,750 फीट की ऊंचाई पर मेरू व सुमेरू पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी पर विराजमान केदारनाथ की पहाड़ियों को इस बार बर्फ की पर्याप्त खुराक नहीं मिल पाई है. बीते वर्ष पूरे यात्राकाल में मई, सितंबर और अक्टूबर माह में धाम में बर्फबारी हुई थी. इसके बाद यहां 17 नवंबर से दिसंबर आखिर तक बर्फबारी नहीं हुई. इस वर्ष जनवरी के शुरूआती 15 दिन केदारनाथ में कुल पांच फीट बर्फबारी हुई है. इसके बाद 30 जनवरी को धाम में बर्फबारी हुई, मगर उसके बाद से यहां ज्यादा बर्फ नहीं गिरी है.

10 हजार ग्लेशियरों पर पड़ेगा प्रभाव: गौरतलब है कि हिमालय रेंज में लगभग दस हजार छोटे-बड़े ग्लेशियर हैं, जिन पर मौसम चक्र में बदलाव का सीधा असर पड़ रहा है. दिसंबर के माह में ग्लेशियरों में बर्फ की मोटी परत जमना जरूरी है. क्योंकि जनवरी-फरवरी में ऊपरी क्षेत्रों में होने वाली बर्फबारी ग्लेशियरों को आकार देने में सक्षम नहीं होती है. इस बार तो बर्फबारी ना के बराबर हुई है. केदारनाथ से चार किमी ऊपर चोराबाड़ी ताल है, जहां से मंदाकिनी नदी निकलती है. इस ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगभग 14 किमी है. जबकि इसी ग्लेशियर से लगा कंपेनियन ग्लेशियर है, जो सात किमी क्षेत्र में है. बीते वर्ष सितंबर-अक्टूबर में इन्हीं दोनों ग्लेशियरों में हिमखंड टूटने की तीन घटनाएं हुई थी.

बदले मौसम चक्र से पर्यावरणविद भी चिंतित: प्रसिद्ध पर्यावरणविद देव राघवेंद्र बद्री ने बताया कि मौसम का चक्र शिफ्ट हो गया है. बारिश और बर्फबारी सही से नहीं हो रही है. इसका असर ग्लेशियर पर पड़ेगा और ग्लेशियर में बर्फ नहीं होगी तो वे जल्दी पिघल जायेंगे. उन्होंने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी नहीं होने से पर्यावरण का खतरा सामने आ रहा है. इससे वैज्ञानिकों के साथ ही जो इस क्षेत्र में कार्य कर रहे बड़े-बड़े संगठन हैं, वे भी खासे चिंतित हैं.

ग्लोबल वार्मिंग से बदली ऋतुएं: ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में तेजी से परिवर्तन दिख रहा है. इसका गहरा प्रभारी हमारी ऋतुओं पर पड़ रहा है. साथ ही वनस्पतियों पर भी इसका बुरा असर देखने को मिल रहा है. पर्यावरणविद देव राघवेंद्र बद्री ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र तुंगनाथ, केदारनाथ, बदरीनाथ व मदमहेश्वर धाम की बात करें तो यहां उम्मीद के अनुसार भी बर्फ नहीं गिरी है. हिमालयी क्षेत्रों में बर्फ नहीं गिरेगी तो जो नयी बर्फ होगी वो जल्दी से फिसल जायेगी और एवलॉन्च की घटनाएं बढ़ती जायेंगी.
ये भी पढ़ें: Changing Pattern of Rain: हिमालयी राज्यों में बारिश का बदला पैटर्न, अनियंत्रित डिस्ट्रीब्यूशन ने बढ़ाई चिंता

हाथ लगाते ही झड़ रहे जल्दी खिले बुरांश के फूल: उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का गलत असर बड़ी नदियों के साथ ही पानी के स्रोतों पर भी देखने को मिलेगा. जीव जंतुओं और जैव विविधता पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण बुरांश के फूल जल्दी तो खिल रहे हैं, लेकिन अधिक समय तक नहीं टिक पा रहे हैं. इस पर हाथ लगाते ही यह झड़ रहे हैं. इसे अर्ली प्रीमेच्योर फ्लावरिंग स्टेज कहा जाता है, जिसमें फूल पूर्ण रूप से नहीं बन पाता है. उन्होंने कहा कि हिमालय ने संकेत देना शुरू कर दिया है कि अब हम खतरे की कगार पर हैं.

Last Updated : Feb 14, 2023, 1:51 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details