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क्या केदारनाथ में शीतकाल में हो रहे निर्माण कार्यों से बिगड़ रही हिमालय की सेहत? जानिए क्या कहते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ - उत्तराखंड लेटेस्ट न्यूज

Construction Work in Kedarnath Dham, Construction in Kedarnath is big threat to environment of Himalayas, केदारनाथ धाम के कपाट भले ही 15 नवंबर को बंद हो गए है, लेकिन अभी भी वहां करीब 800 लोग रुके हुए हैं, जो दिन रात केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं. केदारनाथ में शीतकाल के दौरान हो रहे पुनर्निर्माण कार्यों पर विशेषज्ञों ने सवाल खड़े किए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि केदारनाथ धाम में कपाट बंद होने बाद जो बड़े निर्माण कार्य किए जा रहे हैं, उनसे पर्यावरण का बड़ा खतरा पहुंच रहा है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 4, 2023, 12:57 PM IST

Updated : Dec 4, 2023, 4:33 PM IST

क्या केदारनाथ में शीतकाल में हो रहे निर्माण कार्यों से बिगड़ रही हिमालय की सेहत?

रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड): शीतकाल में जहां बाबा केदारनाथ धाम के कपाट बंद हो जाते हैं और बाबा समाधि में लीन हो जाते हैं. वहीं धाम में केदारनाथ आपदा के बाद से पुनर्निर्माण कार्य जोरों पर चल रहे हैं. इन कार्यों में करीब आठ सौ ज्यादा मजदूर लगे हुए हैं, जो भारी ठंड में भी धाम में निर्माण कार्यों में जुटे हुए हैं. पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि इन निर्माण कार्यों से हिमालय पर खतरा मंडरा रहा है. दिसंबर माह शुरू हो गया है और अब तक धाम में कपाट बंद होने के बाद बर्फबारी एक ही बार हुई है, जबकि निचले क्षेत्रों में बारिश भी नहीं हो रही है. ऐसे में पर्यावरण विशेषज्ञ खासे चिंतित नजर आ रहे हैं.

कपाट बंद होने के केदारनाथ में नहीं हुई बर्फबारी: दरअसल, एक दशक से मौसम में खासा परिवर्तन देखने को मिल रहा है. जहां पहले केदारनाथ धाम में कपाट बंद होने से पहले ही बर्फबारी शुरू हो जाती थी और निचले क्षेत्रों में बारिश होने से फसलों में नई ऊर्जा का संचार होता था. वहीं इस बार हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी अभी तक नहीं हो रही है. केदारनाथ धाम के कपाट 15 नवंबर को बंद हो गए थे और तब से अब तक एक ही बार केदारनाथ धाम में बर्फबारी हुई है.
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इसके अलावा निचले क्षेत्रों में एक बार भी बारिश नहीं हुई है. बारिश नहीं होने से जहां काश्तकारों की फसलों को नुकसान हो रहा है, वहीं हिमालयी क्षेत्रों पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं. पिछले एक दशक से हिमालय क्षेत्रों में परिवर्तन देखने को मिल रहा है.

शीतकाल में केदारनाथ धाम में निर्माण कार्य सही नहीं: पर्यावरण विशेषज्ञों की मानें तो केदारनाथ धाम सहित उच्च हिमालयी क्षेत्रों में निर्माण कार्य शीतकाल में नहीं किए जाने चाहिए. शीतकाल में निर्माण कार्य किये जाने से ग्लेशियरों पर खतरा मंडरा रहा है. शीतकाल में बर्फबारी नहीं हो रही है और जब बाबा के कपाट खुल रहे हैं, उस समय बर्फबारी हो रही है. पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेंद्र बदरी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग का असर हिमालयी क्षेत्रों में दिख रहा है. केदारनाथ धाम में शीतकाल के समय निर्माण कार्य होने से इसका सीधा असर हिमालय पर पड़ रहा है. ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फबारी नहीं हो रही है. जीव जंतु, जल, जंगल और जमीन पर इसका असर पड़ रहा है.

केदारनाथ धाम के कपाट 15 नवंबर को बंद हो गए थे.

उन्होंने कहा कि केदारनाथ हिमालय ने 2013 की आपदा को झेला है, यहां पर शीतकाल में निर्माण कार्य नहीं होने चाहिए. शीतकाल में केदारनाथ धाम में पूरे तरीके से मानव गतिविधियां बंद होनी चाहिएं. उन्होंने कहा कि सवाल आने वाली पीढ़ियों का है, जब उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. बाबा के कपाट शीतकाल में 6 माह के लिए बंद हो जाते हैं और ग्रीष्मकाल के 6 माह खुले रहते हैं. कपाट बंद होने के बाद बाबा समाधि में लीन हो जाते हैं. ग्रीष्मकाल के दौरान लाखों की संख्या में यात्री पहुंचकर प्लास्टिक कचरे से हिमालय को नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि शीतकाल के समय चल रहे निर्माण कार्यों से हिमालय में परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं.
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बड़े स्तर पर नहीं होना चाहिए निर्माण कार्य: पूरे विश्व में उत्तराखंड आधी आबादी को पानी, ऑक्सीजन और औषधी देने का कार्य कर रहा है. ऐसे में हिमालयी क्षेत्रों में निर्माण कार्य बड़े स्तर पर नहीं होने चाहिए. वहीं केदारनाथ धाम में निर्माण कार्य कर रही कंस्ट्रक्शन कंपनी के मैनेजर विमल रावत ने बताया कि धाम में चिकित्सालय, पुलिस, प्रशासनिक, तीर्थ पुरोहित के भवनों के साथ ही अन्य कार्य चल रहे हैं. कपाट बंद होने के बाद धाम में कुछ दिन पहले एक बार बर्फबारी हुई है. रात के समय धाम का तापमान माइनस 8 तक जा रहा है. लोनिवि के साथ कई निर्माण कंपनियों के 800 के करीब मजदूर कार्य कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि धाम में ज्यादा बर्फबारी होने के बाद घोड़े-खच्चरों की आवाजाही बंद हो जाएगी और फिर कार्य को भी बंद करना पड़ेगा.

Last Updated : Dec 4, 2023, 4:33 PM IST

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