रुद्रप्रयाग:भारत की आजादी की लडाई में गढ़वाल क्षेत्र का बड़ा योगदान रहा है. स्वाधीनता की लड़ाई में पहली कामयाबी यहां की कुली बेगार प्रथा को दिया जाता है, जिसके जरिये अंग्रेजों को पहली बार भागने पर मजबूर होना पडा था. ब्रिटिश काल की एक जघन्य प्रथा, जिसे कुली बेगार या वरदायश प्रथा के नाम से जाना जाता था और पूरा कुमांयू व गढ़वाल इस गुलामी व दास्तां की प्रथा से त्रस्त था.
जनता के आंदोलन के आगे ब्रिटिश सरकार को इस प्रथा का अंत करना पड़ा और स्वयं महात्मा गांधी ने तार भेजकर इस जीत को स्वतंत्रता के आंदोलन की पहली जीत बताया था. यह ऐतिहासिक स्थल आज भी मौजूद है. तत्कालीन चमोली जनपद के ककोड़ाखाल जो अब रुद्रप्रयाग जनपद का हिस्सा है. यहां आज भी बेगार प्रथा से जुड़ी निशानियां मौजूद हैं, जिनका जिक्र इतिहास के पन्नों में है.
रुद्रप्रयाग जनपद के विकासखंड अगस्त्यमुनि के अंर्तगत दूरस्त क्षेत्र में मौजूद है ककोडाखाल गांव, जो भारत की आजादी में एक बड़ी क्रान्ति का गवाह है. इस कुप्रथा से त्रस्त होकर कुमांयू क्षेत्र में बद्रीदत्त पांडे एवं गढ़वाल क्षेत्र में अनुशूया प्रसाद बहुगुणा ने मोर्चा संभाला और जनता को एक जुट किया. तत्कालीन समय में गढ़वाल भी कुमांयू कमिश्नरी का हिस्सा था और 13 जनवरी, 1921 को तत्कालीन कुमांयू डिप्टी कमिश्नर पी मेशन को अपने सिपेसलाहकारों व परिवारजनों के साथ कर्णप्रयाग में मकर संक्रान्ति के मेले के लिए पहुंचना था.
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