रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड में जहां एक ओर सरकार काश्तकारों को बढ़ावा देने की बात कर रही है. वहीं, दूसरी ओर काश्तकारों को बाजार तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. जिससे काश्तकारों की चिंता बढ़ गई है. काश्तकारों को उत्पाद डंप होने के कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है.
उत्पादन बढ़ा लेकिन बाजार नहीं मिला
लाॅकडाउन के समय हजारों की संख्या में जिले के लोग बेरोजगार हुए हैं, जिन्होंने मशरूम उत्पादन कर अपना स्वरोजगार शुरू किया. लेकिन अब उन्हें बाजार उपलब्ध न होने से काश्तकारों को परेशानी उठानी पड़ रही है. जिला प्रशासन की ओर से भी उनकी कोई मदद नहीं की जा रही है, जिस कारण उनमें मायूसी देखने को मिल रही है.
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किसानों ने खुद की पहल
जिले के अगस्त्यमुनि विकासखंड के अन्तर्गत नवासू गांव के प्रवासियों ने कोरोनाकाल में परिवार का भरण-पोषण करने के लिए स्वरोजगार करने का मन बनाया और मशरूम उत्पादन करने की सोची. इसके लिए उन्होंने ट्रेनिंग भी ली. सबसे पहले उन्होंने एक छोटे कमरे में मशरूम उत्पादन को लेकर तैयारियां की, जिसमें उन्हें अच्छी सफलता भी मिली. उन्होंने आगे भी इसका उत्पादन करने का मन बनाया और दो-तीन जगहों पर यूनिट लगानी शुरू की. जिसमें उनको अपेक्षा से अधिक उत्पादन होने लगा. अब उनका उत्पादन ज्यादा होने लगा है, लेकिन बाजार न मिलने से वे परेशान हैं. जबकि, आसपास के छोटे-छोटे बाजारों में वे स्वयं ही सम्पर्क करके मशरूम बेच रहे हैं. लेकिन उत्पादन ज्यादा होने से उनका सामान खराब होने लगा है और उन्हें मायूसी हाथ लग रही है.
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बाजार न मिलने से काश्तकार परेशान
नवासू गांव के पांच युवाओं ने बटन मशरूम का उत्पादन 500 बैग में शुरू किया, जिससे 35 दिनों में 3 कुंतल बटन मशरूम तैयार हो चुका है. इस महीने क्षेत्र में हो रही शादियों के साथ ही खिर्सू, चैबट्टाखाल तक सप्लाई की गई, लेकिन उत्पादन में हो रही वृद्धि से अब इन युवाओं के सामने बाजार की समस्या खड़ी हो गई है.
प्रतिदिन 50 से 60 किलो मशरूम का उत्पादन
ग्रामीण काश्तकार बटन मशरूम के उत्पादन के लिए देहरादून से कंपोस्ट खाद मंगा रहे हैं. साथ ही दो सौ और बैग भी तैयार किए जा रहे हैं. गांव के कई युवाओं को रोजगार दिया गया है. उत्पादन के सापेक्ष पर्याप्त बाजार नहीं मिल पा रहा है. अभी तक प्रतिदिन 50 से 60 किलो मशरूम मिल रहा है, जिसकी खपत मुश्किल हो रही है.
क्या कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीणों की मानें तो प्रदेश सरकार प्रवासियों को स्वरोजगार करने की ओर जागृत कर रही है, लेकिन उन उत्पादों को खरीदने वाला नहीं मिल रहा है. साथ ही उत्पादन को कहां बेचना है, उसके लिए भी बाजारा उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. बाजार न मिलने के कारण गांव-गांव जाकर माल बेचा जा रहा है, लेकिन उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. जिला उद्यान अधिकारी से गुहार लगाने के बाद भी कोई खास रिस्पांस नहीं मिल रहा है. जिससे युवा खासे परेशान दिख रहे हैं.
जिलाधिकारी ने दिया मदद का भरोसा
वहीं, इस मामले में जिलाधिकारी मनुज गोयल ने काश्तकारों की समस्याओं को समझते हुए कहा कि उनके उत्पादन के विपणन की व्यवस्था जल्द की जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रवासी स्वयं का रोजगार कर रहे हैं. इससे अच्छी कोई बात नहीं हो सकती है. उनकी इस समस्या का जल्द निस्तारण किया जायेगा और उन्हें बाजार उपलब्ध कराया जायेगा. इसके लिए सरकार और जिला प्रशासन उनकी हरसंभव मदद करेगा.