रुद्रप्रयाग: देवभूमि उत्तराखंड के कई जिलों में आज भी पौराणिक परंपराएं हैं, जिनका निर्वहन ग्रामीण आज भी कर रहे हैं. ऐसी ही एक परंपरा का निर्वहन धारकोट-निरवाली गांव के ग्रामीण सदियों से करते आ रहे हैं. धारकोट-निरवाली गांव में पिछले पांच सौ से भी अधिक सालों से स्थानीय चंडिका मंदिर और ईशानेश्वर महादेव मंदिर में गेहूं को पीसकर आटे का भोग लगाने की परंपरा काे निभाते आ रहे हैं.
धारकोट-निरवाली निवासी हेमंत चैकियाल ने बताया कि इस परंपरा में गांव के युवाओं द्वारा सेवित ग्राम के प्रत्येक परिवार से सौ ग्राम गेहूं का आटा और धनराशि इकट्ठा की जाती है. विशेषता वाली बात यह है कि आटा हाल में खेत से प्राप्त गेहूं से बना होता है.
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यदि कोई परिवार पुराने साल के गेहूं के आटे या बाजार से खरीदकर लाए गये आटे का प्रयोग करता है, तो वह पड़ोसी परिवार से नए गेहूं का आटा उधार लेता है. बाद में नए गेहूं पिसाकर उधार को वापस कर लेता है.
गांव के प्रत्येक परिवार से इकट्ठे किए गए आटे को स्थानीय चंडिका मंदिर परिसर तक पहुंचाया जाता है. यहां गांव की ओर से नियत पांच व्यक्ति (पंचजन) यजमान के रूप में देवी के पूजन का कार्य करते हैं.
पूजन के विधि-विधान की तैयारी मंदिर का रख-रखाव कर रहे गांव के सेमवाल परिवार करते हैं. वहीं मंदिर में पूजन मुख्य पुरोहित चैकियाल जाति के ब्राह्मण करते हैं. पूजन में गांव की अधिष्ठात्री देवी और ईशानेश्वर महादेव से सुख एवं आरोग्यता की कामना करते हैं. गांव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य इस पूजन में भाग लेता है.