रुद्रप्रयाग: आज बाबा केदार के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खुल गये हैं. सुबह पांच बजे भगवान केदारनाथ के कपाट विधि-विधान और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खोले गए, मगर कपाट खुलने के बाद भी बाबा केदार के धाम में पूजा अर्चना नहीं होगी. इसका एक बड़ा कारण है. दरअसल, मान्यता है कि मान्यता है कि जब तक भैरवनाथ के कपाट नहीं खुल जाते, तब तक केदारनाथ में आरती नहीं होती है. मंगलवार को केदारनाथ से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित भैरवनाथ की विधिवत पूजा-अर्चना के बाद केदारनाथ मंदिर की आरती और पूजा-अर्चना शुरू की जाएगी.
बाबा केदार से पहले पूजे जाते हैं भैरवनाथ इधर, मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी केदारनाथ धाम के कपाट खुलने पर प्रसन्नता जताई. इस दौरान उन्होंने जन कल्याण तथा आरोग्यता की कामना की. उन्होंने कहा कोरोना महामारी के कारण अस्थाई तौर पर यात्रा स्थगित है. सभी लोग वर्चुअली दर्शन करें. अपने घरों में पूजा-अर्चना करें. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि कोरोना महामारी समाप्त होगी तथा शीघ्र चारधाम यात्रा शुरू होगी.
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पांडवों को मिली थी गोत्र दोष से मुक्ति
ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग भगवान केदारनाथ धाम हिमालय की तलहटी में 11,750 फीट की ऊंचाई पर है. यह रुद्रप्रयाग जिले का मुख्य शिव धाम है. नागर शैली में बना यह मंदिर मंदाकिनी के बाएं तट पर स्थित है. पौराणिक मान्यता के अनुसार नर-नारायण की तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान स्वरूप आशुतोष महादेव ने इस स्थान पर मानव कल्याण के लिए सदैव निवास करने का वचन दिया था. महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडवों के गोत्र दोष के निवारण के लिए महर्षि नारद ने पांडवों को इस स्थान पर भगवान शिव के दर्शन की प्रेरणा दी थी. पांडव गोत्र दोष से मुक्ति पाने के लिए यहां आए.
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भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे. उन्होंने महिष (भैंसा) का रूप धारण किया. भैंसों के बीच में विचरण करने लगे. भीम ने भगवान शिव को पहचान लिया. भगवान शिव जमीन में धंसने लगे. भीम ने महिष रूपी शिव का पृष्ठ भाग पकड़ लिया. पांडवों का भक्तिभाव देखकर भगवान ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए. इस पर पांडव गोत्र दोष से मुक्त हुए. इसी स्थान से महिष रूपी भगवान शिव का मुख पशुपतिनाथ नेपाल में, नाभि मद्महेश्वर, बाहु तुंगनाथ में एवं जटा कल्पेश्वर (चमोली) में प्रकट हुए. केदारनाथ में महिष रूपी भगवान शिव के पृष्ठ भाग की शिला के रूप में पूजा की जाती है.
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केदारनाथ मंदिर के गर्भ गृह के बाहर एक मंडप है. इसमें द्रौपदी सहित पांचों पांडवों की मूर्तियां हैं. गर्भगृह में पत्थर के चार खंभे हैं. ये मंदिर के बाहरी भाग से प्राचीन लगते हैं. मुख्य रूप से मंदिर में भैंसे की पीठ के समान शिला है. इसी को केदारनाथ भगवान का लिंग माना जाता है. इसके अलावा यहां शंकराचार्य समाधि है, जो मंदिर के पीछे अवस्थित है. अखंड ज्योति के दर्शन के लिए हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
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केदारनाथ में स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की होती है पूजा
भगवान शिव के अग्र भाग की पूजा नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में होती है. वहीं नाभि की पूजा द्वितीय केदार मद्मेश्वर, बाहु की पूजा तृतीय केदार तुंगनाथ, नेत्र की पूजा चतुर्थ केदार रुद्रनाथ और जटाओं की पूजा कल्पेश्वर धाम में होती है. केदारनाथ में भगवान शिव के स्वयंभू लिंग के पृष्ठ भाग की पूजा होती है. मान्यता है कि नौवीं सदी में आदिगुरू शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर का पुनरोद्धार किया था. यह भी मान्यता है कि शंकराचार्य इसी स्थान से सीधे स्वर्ग सिधारे थे. केदारनाथ मंदिर के सभामंडप में पांच पाण्डवों के साथ द्रोपदी की मूर्ति भी विराजमान हैं.