उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

देवभूमि में पारंपरिक वाद्य यंत्र के बिना अधूरे लगते हैं मांगलिक कार्य, कलाकारों को सता रही रोजी-रोटी की चिंता

माना जाता है कि 1000 वर्ष पूर्व खस राजाओं के समय से ये नृत्य चला आ रहा है. कालांतर में ये नृत्य कुमाऊं क्षेत्र का लोकनृत्य बन गया, जो शादी और अन्य शुभ अवसरों में  किया जाता है.

पारंपरिक नृत्य करते स्थानीय कलाकार.

By

Published : May 17, 2019, 4:16 PM IST

Updated : May 17, 2019, 9:28 PM IST

पिथौरागढ़: पहाड़ की संस्कृति और विरासत अपने आप में अनूठी है. जिसे देश ही नहीं विदेशी लोग देखने के लिए लालायित रहते हैं. पहाड़ की शादियों में पारंपरिक छलिया नृत्य की धूम किसी से छुपी नहीं है. किसी भी अवसर पर स्थानीय वाद्य यंत्रों की थाप पर लोग थिरकते देखे जा सकते हैं. वहीं अब इस पारंपरिक वाद्य यंत्र पर आधुनिकता की मार पड़ रही है. जिससे वाद्य यंत्र बजाने वालों से लेकर छलिया नृत्य करने वाले कलाकारों को अब रोजी-रोटी की चिंता सता रही है.

देवभूमि का पारंपरिक वाद्य यंत्र.

छलिया नृत्य का जिक्र आते ही पहाड़ों की शादियों की याद आ जाती है. जिसमें हाथों में तलवार और ढाल लिए कलाकार डोल दमाऊ की थाप पर अपना पारंपरिक नृत्य करते दिखाई देते हैं. ये नृत्य अपने आप में काफी अद्भुत होता है. वहीं, माना जाता है कि 1000 वर्ष पूर्व खस राजाओं के समय से ही ये नृत्य चला आ रहा है. कालांतर में ये नृत्य कुमाऊं क्षेत्र का लोकनृत्य बन गया, जो शादी और अन्य शुभ अवसरों में किया जाता है. इस नृत्य में छोल्यार युद्ध जैसे संगीत की धुन में तलवार और ढाल चलाते है, जो कि लड़ाई जैसा प्रतीत होती है. छलिया नृत्य को काफी शुभ माना जाता है इसके पीछे ये भी धारणा है कि यह बुरी आत्माओं से बारातियों को सुरक्षा प्रदान करता है.

बढ़ने लगा लोगों का रुझान

विगत वर्षों में छलिया नृत्य करने वाले कलाकारों का व्यवसाय कम हो गया. लेकिन अब लोगों का इसकी ओर रुझान बढ़ने लगा है. बैंडबाजे की डिमांड बढ़ने से छलिया नृत्य की परंपरा पर संकट मंडराने लगा था. वहीं कुछ सालों में फिर से पारंपरिक छलिया नृत्य की डिमांड बढ़ने लगी है. कई लोग शादियों में बैंडबाजे के साथ पारंपरिक छलिया नृत्य को भी शामिल करते हैं.

संरक्षण की जरूरत

शादियों के तीन चार माह ही होते हैं, ऐसे में नाममात्र की धनराशि से छलिया नर्तकों के परिवार का गुजर बसर करना काफी कठिन हो गया है. छलिया कलाकार अपनी नई पीढ़ी को इस नृत्य से दूर रखना चाहते हैं. छलिया कलाकारों का मानना है कि महोत्सवों और सरकारी कार्यक्रमों से छलिया नृत्य को सामान्य जनजीवन में शामिल करना होगा. जिससे आम जनजीवन में शामिल होने वाली ये कला जीवित रह सकें. जिसके संरक्षण के लिए सरकारी और गैरसरकारी प्रयासों की भी जरूरत है. जिससे ये विधा आगे भी जीवंत रह सकें.

Last Updated : May 17, 2019, 9:28 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details