बेरीनाग: इन दिनों पर्वतीय क्षेत्रों में सातू-आठू पर्व की धूम मची हुई है. जिसका स्थानीय लोग जमकर लुत्फ उठा रहे हैं. इस पर्व का लोग साल भर बेसब्री से इंतजार करते हैं. सातू-आठू पर्व में देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत के दर्शन होते हैं. जिसका स्थानीय लोगों में खास महत्व है. सातू-आठू पर्व में भगवान शिव और मां पार्वती की जीवन लीलाओं का वर्णन है. जिसका इस पर्व में लोकगीतों के माध्यम से बखान किया जाता है.
मां पार्वती को मनाने कैलाश से आएंगे शिव गौर हो कि भादो माह की पंचमी को गौरा महेश के निमित्त एक पात्र में पंच धान्य खास तौर पर गेहूं, मास, चना, लोबिया, मटर आदि को दूब सहित भिगोएं जाते है, जिन्हें बिरूड कहते हैं. इन्हें घर के मंदिर में रखा जाता है. सप्तमी के दिन इन बिरुडों से गौरा और महेश पूजे जाते हैं. महिलाएं सातू के दिन हाथ में डोर तथा आठू के दिन गले में डुबड़ा पहनती हैं.
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सातू-आठू का यह लोक उत्सव भादो माह की सप्तमी और अष्टमी को मनाया जाता है. एकतरह से यह वर्षाकालीन उत्सव है, जिसमें महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के साथ ही शिव पार्वती की उपासना करती हैं. देखा जाय तो सातू- आठू की यह परंपरा प्रत्यक्षतः हिमालय के प्रकृति परिवेश और जनमानस से जुड़ी है.
मां पार्वती को मनाने कैलाश से आएंगे शिव, ये है पौराणिक कथा गौरा महेश्वर की गाथा में शिव पार्वती को आम मनुष्यों के रूप में चित्रित कर पहाड़ी जनजीवन मौजूद समाज के विविध पक्ष और यथार्थ को सामने लाने की कोशिश की गई है. एक आम स्त्री के संघर्ष, कर्म और कर्तव्य की मनसा व पीड़ा इन गाथाओं में मिलती है.
लोक जीवन में रचे-बसे पात्र लौलि यानी गवरा पार्वती अपने पिता के घर मायके को जाने वाला मार्ग प्रकृति के विभिन्न सहचरों से पूछती रहती है. यहां पर प्रतीक रूप में प्रकृति गौरा के लिए पूरी तरह एक पथ प्रदर्शक और शरण दाता की भूमिका में नज़र आती है. आठूं के दिन अनाज, धतूरे, फल- फूलों से गौरा महेश्वर यानी शिव पार्वती की पूजा की जाती है और उनकी गाथा गाई जाती, वहीं रात में जागरण होता है.
सातू-आठू पर्व में भगवान शिव और मां पार्वती की जीवन लीलाओं का वर्णन है. मान्यता है कि जब माता पार्वती भगवान भोलेनाथ से किसी बात को लेकर नाराज होकर मायके आतीं हैं तो भगवान शिव उन्हें वापस लेने धरती पर आते हैं. घर वापसी के इसी मौके को यहां गौरा देवी के विदाई के रूप में मनाया जाता है.
इस पर्व पर प्रतीक रूप में शिव पार्वती की सुदंर प्रतिमाएं बनाई जाती हैं. शाम को महिलाएं अपनी रंग परंपरागत परिधानों में लोक नृत्य करती हैं. महिलायें गौरा महेश की प्रतिमा को अपने सिर पर रखते हुए आंगन या मंदिर में लाती हैं. पूजा के बाद में गौरा.महेश्वर की प्रतिमाओं का विसर्जन धारों और नौलों में किया जाता है.
यह त्योहार क्षेत्र के उडियारी, कांडे, किरौली, चैकोड़ी, पांखू, राई, आगर, पुरानाथल, गंगोलीहाट, थल आदि क्षेत्रों में धूम धाम के साथ मनाया जा रहा है. इस पर्व के लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में काफी उत्साह देखने को मिलता है.