पिथौरागढ़: प्राचीन समय से ही पहाड़ों में लाइलाज बीमारियों का इलाज परंपरागत तरीकों से ही किया जाता रहा है. आज के दौर में भी कई बीमारियों के लिए कंदमूल फलों का उपयोग कर पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों का इलाज किया जाता है. ऐसा ही एक फल है गीठीं जो आम तौर पर जंगलों में पाया जाता है. गीठी में कई औषधीय गुण पाएं जाते हैं. जो कई रोगों से लड़ने में मदद करते हैं. वहीं अब इसके औषधीय गुणों को देखते हुए लोग घरों में भी गीठी की खेती कर रहे हैं.
बता दें कि गीठी का वानस्पतिक नाम डाइस्कोरिया बल्बीफेरा है. ये डाइस्कोरेसी फैमिली का पौधा है. विश्व भर में गेठी की कुल 600 प्रजातियां पाई जाती हैं. गीठी का फल बेल में लगता है जो हल्के गुलाबी, भूरे और हरे रंग का होता है. आम तौर पर गीठी के फल की पैदावार अक्टूबर से नवंबर माह के दौरान होती है.
गीठी में डायोसजेनिन और डायोस्कोरिन नामक रसायनिक यौगिक पाए जाते है. जिसका उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है. साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में लोग इसका उपयोग सब्जी के रूप में भी करते हैं. आम तौर पर गीठी के फल को पानी में उबालने के बाद इसका छिलका उतारा जाता है. जिसके बाद इसे तेल में भून कर इसमें मसाले मिलाए जाते हैं. जिसके बाद इसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. गीठीं में प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है. इसका उपयोग च्यवनप्राश बनाने में भी किया जाता है. गींठी का सेवन करने से शरीर में उर्जा का स्तर भी बढ़ता है.