पिथौरागढ़:पौष्टिकता से भरपूर सोयाबीन यानी भट्ट की खेती पहाड़ों में पारंपरिक तौर से की जाती है. पहाड़ी क्षेत्रों में भट्ट की अनेक किस्में पाई जाती हैं, जिनमें काला भट्ट एक प्रमुख किस्म है. एक समय था जब पुरानी मान्यताओं के चलते पहाड़ में काला भट्ट उपेक्षित था. मगर, जब लोगों को इसके फायदे पता चले तो इसका प्रचलन खूब बढ़ा.
पहाड़ की पहचान है काले भट्ट की दाल काले भट्ट का प्रयोग भट्ट की चुड़कानी, भट्ट के डूबके, रसभात और भट्ट की दाल जैसे पहाड़ी व्यंजनों को बनाने के लिए होने लगा. साथ ही सोया सोस, मोमो चंक और न्यूट्रेला बनाने में भी काला भट्ट का प्रयोग किया जाता है. वर्तमान में भट्ट से बनी नमकीन और अन्य उत्पाद खूब प्रचलन में हैं. पहाड़ी समाज भले ही देश के एक भी कोने में बसा हो, मगर भट्ट के पारंपरिक व्यंजन सभी की पहली पसंद है. काला भट्ट की मार्केट में खूब डिमांड रहती है. मगर, जंगली-जानवरों द्वारा फसल को क्षतिग्रस्त किये जाने के कारण इसके उत्पादन में कमी आई है.
पढ़ेंःअंग्रेजों के जमाने का पारंपरिक घराट आज भी कर रहा काम, कभी इसके इर्द गिर्द घूमता था पहाड़ का जीवन
पहाड़ों में पाई जाने वाली भट्ट ईस्ट एशिया की मूल प्रजाति है और चीन इसका मूल राष्ट्र है. भारत के अलावा अमेरिका में भी आमतौर पर भट्ट खाए जाते हैं. पहाड़ों में काले, पीले, भूरे और हल्के सफेद रंग के भट्ट की खेती होती है. भट्ट का बीज और फल उपयोगी माना जाता है. भट्ट में प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स, फाइबर जैसे पोषण तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. 100 ग्राम काले भट्ट में 1500 मिलीग्राम पोटैशियम, 9 मिलीग्राम सोडियम और 21 ग्राम प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. साथ ही इसमें मौजूद विटामिन ए, बी12, डी और कैल्शियम भी स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है. भट्ट एंटी-ऑक्सीडेंट का अच्छा स्त्रोत है.
पढ़ेंःनई तकनीक के 'चक्की' में पिस गई घराट, विलुप्त होने के कगार पर 'अमीर विरासत'
भट्ट के फायदे
भट्ट कोलेस्ट्रॉल कम करने वाले फाइबर का अच्छा स्रोत है. इसमें फाइटो स्ट्रोजनस, डेडजेन और जेनस्टेन पाया जाता है, जो प्रोस्टेट और स्तन कैंसर की रोकथाम के लिए प्रभावी है. थायामिन (विटामिन बी1), फॉस्फोरस, आयरन, मैग्नीशियम और पोटेशियम का भी ये अच्छा स्त्रोत है. इसमें वसा की मात्रा बहुत कम होती है, लेकिन इसमें गैस बनाने वाले एन्जाइम्स होते हैं. इसलिए इसे हमेशा पकाने से पहले कुछ देर के लिए भिगोकर रखना चाहिए.
पढ़ेंः कवायद: पारंपरिक घराटों में जान फूंकेगी त्रिवेंद्र सरकार
कोलेस्ट्रॉल कम करने के साथ ही इसमें मौजूद फाइबर ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा को तेजी से बढ़ाने से रोकता है. जो इन दालों को डायबिटीज, इंसुलिन रेसिसटेंट और हाइपोग्लाईसीमिया से जूझ रहे रोगियों के लिए उपयुक्त बनाता है. गर्भवती महिलाओं के लिए काले बीन्स में मौजूद फोलेट बच्चे के विकास में बहुत फायदेमंद होते हैं. बींस के उपयोग से आपकी वेस्टलाइन के बढ़ने की संभावना 23 फीसदी कम हो जाती है.