पिथौरागढ़: पहाड़ों में मेले धार्मिक आस्था, संस्कृति और मनोरंजन का पर्याय हैं. आज के उपभोक्तावादी दौर में भी पहाड़वासियों के लिए इन मेलों का महत्व कम नहीं हुआ है. पिथौरागढ़ की सोरघाटी में मनाया जाने वाला ऐतिहासिक मोस्टमानू मेला भी इन्हीं में से एक है. ये मेला पहाड़ के कृषि जीवन के साथ ही यहां के सांस्कृतिक इतिहास को भी बयां करता है.
प्राचीन काल से ही देवभूमि उत्तराखंड में मेलों का खासा महत्व रहा है. तेजी से बदलते इस दौर में जहां लोग आधुनिकता की अंधी दौड में भाग रहे हैं, वहीं पिथौरागढ़ के मोस्टमानू मेले में लोगों का उमड़ा जनसैलाब इस मेले के महत्व को बयां कर रहा है. सदियों से पिथौरागढ़ जिले में मनाया जा रहा मोस्टा देवता का ये मेला धार्मिक आस्था का पर्याय है.
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मोस्टा देवता को यहां के लोग बारिश के देवता यानी वरूण देव के रूप में पूजते आए हैं. मान्यता है कि प्राचीन काल में बारिश न होने की वजह से इस इलाके में भयंकर अकाल पड़ा. तभी लोगों ने इस मंदिर में मोस्टा देवता का यज्ञ कर उन्हें प्रसन्न किया. जिसके बाद झमाझम बारिश होने लगी. तभी से ये मेला हर साल यहां मनाया जाता है.