पिथौरागढ़: उत्तराखंड में इन दिनों नंदाष्टमी महोत्सव की धूम मची हुई है. पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी और बंगापानी तहसील में नंदाष्टमी पर्व को खास अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. यहां लोग मां नंदा देवी की पूजा राज्य पुष्प ब्रह्मकमल से करते हैं. हर तीसरे साल ब्रह्मकमल लाने के लिए दो दर्जन से अधिक गांवों के ग्रामीण 13 हजार 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित छिपलाकेदार क्षेत्र में जाते हैं. जहां कुंड में स्नान, परिक्रमा और पूजा-अर्चना कर ब्रह्मकमल लेकर वापस अपने गांव लौटते हैं, जिसके बाद पूरे विधि विधान से मां नंदा देवी की पूजा की जाती है.
मां नंदा देवी को भगवती की 6 अंगभूता देवियों में से एक माना जाता है. साथ ही नंदा देवी को नवदुर्गाओं में से भी एक बताया गया है. मान्यता है कि हिमालय की नंदा देवी को ब्रह्मकमल पुष्प प्रिय है. जिस कारण राज्य पुष्प ब्रह्मकमल से मां नंदा की पूजा करने का रिवाज पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है. साथ ही ग्रामीणों द्वारा पारंपरिक वेशभूषा में लोकगीतों के साथ गीत जाए जाते हैं. सदियों पुरानी इस परंपरा को यहां के लोग आज भी जीवित रखे हुए हैं.
ढोल-नगाड़ों के साथ छिपला जात में शिकरत करते श्रद्धालुःमुनस्यारी और बंगापानी तहसील के ग्रामीण मां नंदा देवी को चढ़ाए जाने वाले ब्रह्मकमल को लाने के लिए प्रत्येक तीसरे साल भादों के महीने में छिपलाकोट की यात्रा करते हैं. इसे छिपला जात के नाम से भी जाना जाता है. 30 से 90 किलोमीटर लंबी इस पैदल यात्रा में ग्रामीणों को करीब 5 से 7 दिन लगते हैं. छिपलाकोट से प्रसाद के रूप में केदार कुंड का पवित्र जल और पवित्र पुष्प ब्रहमकमल साथ लाने की परंपरा है. ढोल-नगाड़ों के साथ ग्रामीण ब्रह्मकमल लेकर वापस अपने गांव पहुंचते है, जहां नंदा देवी के मंदिर में पूजा की जाती है.