पिथौरागढ़: कुमाऊं में दीपावली के मौके पर ऐपण बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. शहरीकरण के चलते भले ही अब ऐपण पारंपरिक तरीके के बजाए रेडीमेड बाजार में बिकने लगे हैं. लेकिन, कुमाऊं में होने वाले किसी भी शुभ कार्य में हाथ से बनाए एपणों का महत्व आज भी बरकरार है.
ऐपण यानी रंगों से भरी पंक्तियां. महाराष्ट्र से शुरू हुई रंगोली, बंगाल में अल्पना, दक्षिण भारत में कोलम और उत्तराखंड में ऐपण के नाम से जानी जाती है. कुमाऊं में होने वाले प्रत्येक तीज-त्योहारों में इन ऐपणों का खास महत्व है. दीपावली के मौके पर ये ऐपण घरों की चौखटों और मंदिरों में सजाए जाते है और आंगन और घर में लक्ष्मी के पैर बनाए जाते हैं. आधुनिक दौर में समय की कमी के चलते ऐपणों को बनाने के लिए गेरू, कमेट और लाल मिट्टी के बजाए पेंट और ब्रुश का इस्तेमाल किया जाने लगा हो. लेकिन कुमाऊं के सभी घर दीपावली के मौके पर इन ऐपणों के रंगों में रंगीन नजर आते हैं.
दीपावली के मौके पर महिलाएं इन ऐपणों को पूरी लगन से अपने-अपने घरों में सजाती है. दिखने में भले ही ये ऐपण आसान नजर आते हैं, लेकिन इन्हें बनाने में ग्रहों की स्थिति का खास ख्याल रखा जाता है. कहा जाता है कि शुभ अवसरों पर इन ऐपणों को बनाने से घर में खुशहाली और सुख-समृद्धि आती है. आज के बाजारवादी दौर में इन ऐपणों का भी बाजारीकरण हो गया है.