बेरीनाग: कुमाऊं का लोक पर्व घुघुतिया बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. मकर संक्रांति और उत्तरायणी के इस पावन पर्व पर लोग घरों में घुघुतिया बनाकर, इस त्योहार को सेलिब्रेट करते हैं. पूरे कुमाऊं मंडल में इस त्योहार को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है.
पारंपरिक गीतों पर थिरके हरदा
त्योहार से एक दिन पहले महिलाएं, बच्चे, बड़े-बुजुर्ग घरों में घुघुतिया बनाते हैं. घूंघते बनाने के लिए आटा, तेल, सूजी, दूध, घी और गुड़ के पानी से आटा बनाकर उसके घुघुते बनाए जाते हैं. वहीं, पूर्व सीएम हरीश रावत घुघुतिया त्योहार, उत्तरायणी मेले में पारंपरिक नृत्य करते दिखाई दिए. बच्चों की उत्सुकता के लिए ढोल, तलवार, ढाल और चकरी सहित अन्य आकार के घुघुते भी बनाए जाते हैं. जिसे बच्चों द्वारा पहले कौवा को खिलाया जाता है. इसके बाद प्रसाद स्वरूप इसे ग्रहण किया जाता है. घूंघते को अपने नाते-रिश्तेदार, सगे-संबंधियों और आस-पड़ोस के लोगों को बांटा जाता है और त्योहार की खुशियां साझा की जाती है.
घुघुतिया त्योहार की मान्यता
घुघुतिया त्योहार को मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोक कथा है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कुमाऊं में चंद्रवेश के राजा राज करते थे. उस समय राजा की कोई संतान नहीं थी. एक दिन राजा और रानी बागनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति की मनोकामनाएं की. कुछ समय के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भय रखा. जबकि, मां प्यार से घुघुती के नाम से पुकारती थी और उसके गले में एक माला भी डाली थी. जब घुघुती परेशान करता तो मां उस दौरान 'काले कौवा काले घुघती की माला खाले' बोलकर डराती थी.
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कौवों और घुघुती की दोस्ती