पिथौरागढ़: हिमालयी वियाग्रा के नाम से जाने जानी वाली कीड़ा-जड़ी के दोहन की तैयारियां तेज हो गई हैं. उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी को यारसागंबू के नाम से भी जाना जाता है. हर साल की तरह इस जड़ी को चुनने के लिए धारचूला और मुनस्यारी के हजारों लोग ऊंचाई वाले इलाकों का रुख करेंगे. तो वहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय दखल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है.
ये है इस जड़ी की खासियत
गौर हो कि 3500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली यारसागंबू स्टेमिना और ताकत बढ़ाने के काम आती है. इस जड़ी की सबसे ज्यादा डिमांड यौन शक्तिवर्धक दवाइयां बनाने के लिए होती है. वहीं, स्थानीय लोग इस डिमांड को पूरी करने के लिए इस कीड़ाजड़ी का बड़े पैमाने पर दोहन करते हैं. जो कई लोगों के रोजगार का साधन भी है.
अंतराष्ट्रीय बाजार में इस कीड़ा-जड़ी की मुंह मांगी कीमत मिलती है. विश्व चैम्पियनशिप में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन के बाद ये कीड़ा-जड़ी पहली बार सुर्खियों में आई थी. चीन की एथलीटों को यारसागंबू का नियमित सेवन कराया जाता है. क्योंकि डोपिंग टेस्ट में ये स्टिरॉयड पकड़ में नहीं आता. पूर्व में इस कीड़ा-जड़ी की कीमत 4 से 5 लाख रुपए प्रति किलोग्राम थी. जो अब 8 से 10 लाख रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. हिमालयी इलाकों में पहले ये जड़ी प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी, मगर पिछले कुछ सालों से यारसागंबू के अत्यधिक दोहन के कारण अब ये जड़ी काफी कम मात्रा में पाई जाती है.
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है यारसागंबू
सामान्य तौर पर कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फफूंद है. जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है. इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम हैपीलस फैब्रिक्स है. स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते है, क्योंकि ये आधा कीड़ा और आधा जड़ी नुमा होता है. चीन और तिब्बत में इसे यारसागुंबा के नाम से जाना जाता है. हिमालय में करीब 11,000 फीट में ये पाया जाता है. मई से जून के बीच बर्फ पिघलने के दौरान इसके पनपने का चक्र शुरू होता है. धारचूला से करीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग के बाद स्थानीय लोग इन इलाकों तक पहुंचते हैं, जहां करीब एक से दो महीने तक डेरा डालकर यारसागंबू का दोहन किया जाता है.