पिथौरागढ़: हिमालयन जड़ी यारसागंबू के विपड़न के लिए भले ही सरकार ने नीति बना दी हो. लेकिन कीड़ा जड़ी (यारसागंबू) चुनकर लाने वाले लोगों के अच्छे दिन नहीं आये है. दरसअल, इस बार चीन के बाजार में भी कीड़ा जड़ी की डिमांड कम हो गयी है. जिस वजह से 14 लाख रुपये प्रति किलो बिकने वाली कीड़ाजड़ी अब 3 लाख रुपये प्रति किलो भी नहीं बिक पा रही है. वहीं, डिमांड ना होने की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले हज़ारों लोगों की रोजी रोटी खतरे में आ गयी है.
चीन से घट रही कीड़ा जड़ी की मांग, गहराया रोजी रोटी का संकट
उच्च हिमालयन वियाग्रा के नाम से विख्यात कीड़ा जड़ी हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका का मुख्य जरिया है. इसी जड़ीबूटी को बेचकर सीमांत क्षेत्रों के हजारों लोग साल भर की रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं. 10,000 फुट से अधिक ऊंचाई पर इस दुर्लभ जड़ी को ढूंढना बेहद मुश्किल काम है.
बता दें कि उच्च हिमालयन वियाग्रा के नाम से विख्यात कीड़ा जड़ी हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आजीविका का मुख्य जरिया है. इसी जड़ीबूटी को बेचकर सीमांत क्षेत्रों के हजारों लोग साल भर की रोजी-रोटी का बंदोबस्त करते हैं. 10,000 फुट से अधिक ऊंचाई पर इस दुर्लभ जड़ी को ढूंढना बेहद मुश्किल काम है. इस बार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी और हिमस्खलन के चलते कीड़ा जड़ी का उत्पादन भी काफी कम हुआ है.
वहीं, चीन ने इस बार कीड़ा जड़ी (यारसागंबू) खरीदने से हाथ पीछे कर लिए है. जिस कारण करोड़ों की कीमत का यारसागंबू ग्रामीणों के पास डंप पड़ा हुआ है. यारसागंबू को खरीदने और उसे चीन की मार्केट में बेचने वाले नेपाली ठेकेदार इस बार यारसागंबू की खरीद के लिए नहीं पहुंचे है. जो ठेकेदार पहुंचे भी है वो औने-पोने दामों में कीड़ा जड़ी खरीद रहे हैं. दाम कम मिलने की वजह से ग्रामीणों ने भी माल नहीं बेचा है. बताया जा रहा है कि चीन ने यारसागंबू को लेकर भारत पर निर्भरता खत्म कर दी है. जिस कारण सीमांत क्षेत्र के लोगों पर रोजी-रोटी का संकट मंडरा रहा है.