बेरीनागः प्रदेश सरकार आए दिन मंचों से लोक संस्कृति को बचाने के लिए बड़ी बड़ी बात करती है. लेकिन लोक संस्कृति को बचाने में ध्वज वाहक की भूमिका निभाने वाले कलाकारों की सुध नहीं लेती है. यह कहना है कि उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक प्रहलाद मेहरा और माया उपाध्याय का. उनका कहना है कि प्रदेश गठन के बाद लोक कलाकारों की आज तक सुध नहीं ली है.
सरकार की उदासीनता पर लोक गायकों की नाराजगी, ग्रामीण स्तर पर प्रोत्साहन जरूरी - लोक कलाकारों की सरकार सुध नहीं लेती
लोक गायक प्रहलाद मेहरा और माया उपाध्याय ने कहा कि सरकार लोक कलाकारों का ध्यान नहीं रखती है. उन्होंने कहा कि संस्कृति को बचाने में ध्वज वाहक की भूमिका निभाने वाले लोक कलाकारों की सरकार सुध नहीं लेती है.
लोक गायक प्रहलाद मेहरा (Folk Singer Prahlad Mehra) और माया उपाध्याय (Folk singer Maya Upadhyay) का कहना है कि प्रदेश के सांस्कृतिक मंचों और महोत्सवों में लोक कलाकार लोक संस्कृति दिखाते हैं. लेकिन आज लोक संस्कृति दिखाने वाले लोक कलाकारों की स्थिति बहुत अधिक दयनीय हो गई है. सरकार कलाकारों को मंच नहीं दे पा रही है. ग्रामीण स्तर पर छिपी कला को मंच मिलना चाहिए. जिससे भविष्य में लोक कलाकारों के साथ साथ लोक संस्कृति भी बची रही.
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उनका कहना है कि कलाकारों के लिए सरकार योजना तो बनाती है, लेकिन ये सभी योजनाएं लोक कलाकारों तक पहुंच ही नहीं पाती. माया उपाध्याय ने लोक गीतों में नशे और शराब की बातों के प्रयोग को भी गलत बताया. उन्होंने कहा कि लोक गीतों का समाज पर खासकर युवा पीढ़ी पर बढ़ा मैसेज जाता है. अगर किसी गीत से गलत संदेश जा रहा है तो उसके खिलाफ सभी कलाकारों को कड़े कदम उठाने चाहिए.