पिथौरागढ़:कुमांऊ के विभिन्न हिस्सों में होली को अलग-अलग अंदाज में मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. अगर बात पिथौरागढ़ जिले की करें तो यहां होलिका अष्टमी के दिन चीर बंधन के बाद पारम्परिक खड़ी होली का आगाज होता है. चीर बंधन के इस आयोजन में जहां सदियों पुरानी संस्कृति की झलक आज भी साफ दिखाई देती है. वहीं इस मौके पर आपसी भाईचारे और साम्प्रदायिक एकता की अनूठी मिशाल भी देखने को मिलती है.
पिथौरागढ़ में होलिकाष्टमी के दिन चीर बांधने के साथ ही होली का विधिवत रूप से शुभारंभ होता है. जिला मुख्यालय स्थित पुरानी बाजार में पिछले 188 सालों से ये परम्परा चली आ रही है. इस मौके पर लोग पेड़ पर लाल, पीले और सफेद निशान के कपड़े बांधते है, जिसके बाद इस पेड़ को सार्वजनिक स्थल या मंदिर के प्रांगण में स्थापित किया जाता है.
इस आयोजन में चीर बंधन के साथ ही चीर हरण की भी अद्भुत परंपरा जुड़ी हुई है, जिस गांव में चीर बांधने की परंपरा नहीं रही है वहां के लोग चीर चुराने के लिए दूसरे गांव में जाते है. चीर हरण के समय कई बार दोनों गांव वालों के बीच संघर्ष तक की नौबत आ जाती है. जिस गांव से चीर का हरण हो जाता है उसे अमंगल माना जाता है. सदियों से पिथौरागढ़ वासी अपनी इस अनूठी परंपरा को संजोए हुए है.