पिथौरागढ़:हिंदी साहित्य के विकास में उत्तराखंड के साहित्यकारों का विशेष योगदान रहा है. हिंदी दिवस पर आज हम बात कर रहे है महाकवि गुमानी पंत की. जिन्हें कुर्मांचल में खड़ी बोली को काव्य रूप प्रदान करने वाला पहला कवि माना जाता है. उन्होंने भारतेन्दू काल के पूर्व से ही खड़ी बोली में रचनाएं लिखी है, बावजूद इसके उन्हे वो उचित सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वो हकदार थे. ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में गुमानी को कुर्मांचल का प्राचीन कवि माना है.
1790 ईसवी में पिथौरागढ़ जिलें के उप्राडा गांव देव निधी पंत घर गुमानी पंत का जन्म हुआ था. गुमानी का मूल नाम लोकरत्न पंत था, लेकिन माता-पिता प्यार से उन्हें गुमानी बुलाते थे और बाद में वो गुमानी के नाम से ही प्रसिद्ध हुए. उनकी सभी रचनाओं में गुमानी नाम का ही उल्लेख मिलता है. गुमानी चंद्र वंश के राजा गुमान सिंह और टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के दरबार में राजकवि रहे है.
पढ़ें- कॉर्बेट नेशनल पार्क में मिली 'उड़ने वाली गिलहरी', दुनिया के दुर्लभ जीवों में से है एक
गुमानी ने संस्कृत, खड़ी बोली, ब्रज, कुमांऊनी और नेपाली भाषा में अपनी अनेक रचनाएं लिखी है. कुमांऊ और गढवाल में अंग्रेजी शासन का वर्णन करते हुए उन्होंने अंग्रेजी राज्य वर्णनम और राजांगरेजस्य राज्य वर्णनम नामक दो रचनाएं लिखी. यहीं नही उन्होंने आयुर्वेद पर ज्ञान भैषज्यमंजरी नामक ग्रन्थ की भी रचना की. गुमानी खड़ी बोली के साथ ही कुमांऊनी और नेपाली के नागर साहित्य के भी पहले कवि थे.