पिथौरागढ़: 17 साल पहले सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का एक सपना दिखाया गया था. ये सपना आजतक पूरा नहीं हुआ. 17 साल पहले सीमांत जनपद पिथौरागढ़ में बेस अस्पताल का निर्माण कार्य शुरू हुआ था, जो पूरा नहीं हुआ. सीमांत जनपद पिथौरागढ़ का निर्माणाधीन बेस अस्पताल बीरबल की खिचड़ी साबित हो रहा है. एक ऐसी खिचड़ी जो 17 साल बाद भी बनकर तैयार नहीं हुई है.
17 साल में नहीं बन पाया पिथौरागढ़ का बेस अस्पताल जिले की राजनीति का मुख्य बिंदु होने के बावजूद आज तक सीमांत जिले के लोगों को बेस अस्पताल का लाभ नहीं मिल पाया है. सरकार ने बेस हॉस्पिटल बनाने के लिए अब तक 60 करोड़ की धनराशि खर्च कर दी है. बावजूद इसके ये 80 फीसदी ही तैयार हो पाया है. 200 बेड की क्षमता वाले बेस अस्पताल में सीटी स्कैन का लाभ भी सीमांत के लोगों को मिल सकता था.
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कोरोना संकट के दौर में निर्माणाधीन बेस हॉस्पिटल को कोविड केयर सेंटर के रूप में कई दफा तब्दील तो किया गया, मगर इसका वो लाभ लोगों को अभी भी नहीं मिला है, जिसकी दरकार दशकों से थी. चीन और नेपाल बॉर्डर से लगे पिथौरागढ़ जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए बेस अस्पताल की मांग दशकों से तेज होती आयी है. उत्तराखंड बनने के बाद सूबे में काबिज सभी सरकारों ने पिथौरागढ़ में बेस अस्पताल बनाने का ऐलान तो किया मगर राजनीति ने इसे फुटबॉल बना डाला.
बता दें कि साल 2005 में एनडी तिवारी सरकार ने जिला और महिला चिकित्सालय को मिलाकर बेस चिकित्सालय बनाने का ऐलान किया था. मगर उस वक्त विपक्षी बीजेपी ने इसका खुलकर विरोध किया. जिसके बाद सरकार को अपना ही फरमान वापस लेना पड़ा. 2010 में पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत ने चंडाक में बेस चिकित्सालय का काम शुरू कराया था. लेकिन 2012 में कांग्रेस की सरकार आते ही इसे चंडाक से हटाकर शहर के नजदीक पुनेड़ी शिफ्ट कर दिया गया. बीते 9 सालों में हॉस्पिटल का ढांचा जरूर खड़ा हो गया है, मगर जनता को बेस अस्पताल की सौगात कब मिलेगी ये कोई नहीं जानता.