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सदियों से चले आ रहे इस त्योहार पर भी कोरोना का कहर, इस साल नहीं होगा आयोजन - पिथौरागढ़ का चेतौल पर्व

कोरोना वायरस के कहर से कोई भी अछूता नही है. इसी कड़ी में पिथौरागढ़ का ऐतिहासिक चेतोल पर्व भी स्थगित हो गया है. लोगों की मान्यता है कि ऐसा सदियों में पहली बार है, जब चेतोल पर्व स्थगित करना पड़ा हो.

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Published : Apr 13, 2020, 6:05 PM IST

Updated : Apr 13, 2020, 7:14 PM IST

पिथौरागढ़: कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों पर पूरी तरह रोक लगाई गई है. ऐसे में पिथौरागढ़ के सोर घाटी में होने वाले ऐतिहासिक चेतोल पर्व का आयोजन भी रद्द कर दिया गया है. ये पर्व सदियों से पिथौरागढ़ शहर और उससे सटे 22 गांवों की आस्था और संस्कृति का प्रतीक रहा है. मगर इतिहास में ये पहला मौका है, जब इस पर्व का आयोजन कोरोना की दहशत के चलते नहीं किया जा रहा है.

चेतोल पर्व पर भी कोरोना का कहर

देवभूमि उत्तराखंड में आस्था और लोकसंस्कृति के सागर में डूबने के अनेकों अवसर हैं. इन्हीं में से एक है, सोर घाटी पिथौरागढ़ में हर साल मनाया जाने वाला चेतोल पर्व. चैत्र माह में मनाये जाने वाले इस पर्व में लोकदेवता देवल समेत बाबा अपनी 22 बहनों को भिटौली यानि भेंट देने के लिए आसपास के 22 गांवों में जाते हैं.

सबसे पहले देवल समेत बाबा की छतरी को तैयार किया जाता है. उसके बाद इस छतरी को सभी 22 गावों में घुमाया जाता है. यह देव डोला घुनसेरा गांव से शुरू होकर बिण, चैंसर, जाखनी, कुमौड़ होते हुये मुख्यालय स्थित घंटाकरण के शिव मंदिर लाया जाता है. मंदिर के इसी प्रांगण में चेतोल के सभी देव डोले पहुंचते हैं.

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मान्यता है कि इस उत्सव में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं. भगवान के डोले को कंधा देने के लिये स्थानीय लोगों को साल भर इस दिन का इंतजार रहता है. इसमें शिरकत करने के लिए देश भर से प्रवासी अपने घरों को लौट आते हैं. मगर इस बार कोरोना की दहशत के कारण चेतोल पर्व के आयोजन पर रोक लगाई गयी है. स्थानीय यशवंत महर बताते हैं वो पिछले कई वर्षों से इस लोकपर्व का हिस्सा रहे हैं. मगर इस बार कोरोना के संक्रमण को देखते हुए इस पर्व को मनाने पर रोक लगाई गई है.

Last Updated : Apr 13, 2020, 7:14 PM IST

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