बेरीनाग: पहाड़ों में आजकल रोपाई (रोपणी) की रौनक है. प्रदेश में रोपाई की रौनक से चारों ओर का वातावरण बड़ा ही खुशगवार बना हुआ है. इन दिनों खेतों में धान की रोपाई हो रही है. रोपाई के दौरान खेतों को पानी से पूरी तरह से भर दिया जाता है. खेत की मिट्टी मुलायम होने पर बैलों के माध्यम से खेतों में हल जोता जाता है और खेत को तैयार किया जाता है. धान के पौधों को नमी वाले स्थान पर उगाया जाता है. उसके बाद रोपाई के लिए तैयार खेतों में धान के इन पौधों को रोपा जाता है.
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रोपाई कार्य फसलों में सबसे मेहनत वाला कार्य होता है. रोपाई से उगाई गई धान की फसल पौष्टिक होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होती है. रोपाई के दौरान गांव में ही एक परिवार दूसरे परिवार की रोपाई लगाने के लिए मदद करता है. रोपाई के दौरान खेतों में उत्सव सा माहौल होता है. कई स्थानों पर मनोरंजन के लिए झोड़ा-चांचरी और हुड़किया बोल भी गाये जाते हैं. आज भी क्षेत्र के पांखू, कांडे किरोली, उडियारी, डीडीहाट, नाचनी, मुनस्यारी, थल, गंगोलीहाट सहित अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में बारिश होने के बाद रोपाई का कार्य बहुत तेजी से चल रहा है.
राजुला-मालुसाई की प्रेम कहानी में भी है हुड़किया बोल का जिक्र
धान की रोपाई के समय खेतों में गाना गाने का रिवाज बहुत पुराना है. राजुला-मालुसाई की प्रेम कहानी में भी धान की रोपाई के समय गायन का उल्लेख मिलता है. प्रसिद्ध गीतकार, गायक और पहाड़ की संस्कृति के संरक्षण के लिए काम कर रहे हिमांशु जोशी ने कुमाऊं डायरी राजुला मालुसाई में जिक्र किया है कि- 'जब राजुला घर छोड़कर मालुसाई से मिलने के लिए बैराट को चली तो लछु और पछु महरा के इलाके में धान की रोपाई चल रही थी. तब धान की रोपाई कर रहे लोग अपने ईष्ट-देवों को प्रसन्न करने के लिए वंदना कर रहे थे.' खेतों में हो रही वंदना का हिमांशु जोशी ने सुंदर वर्णन किया है. वंदना के बोल इस तरह हैं...
खोली का गणेशा हरे हो गणेशा देवा
सुफल है जाया हरे हो गणेशा देवा , देवा