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बादल फटने में जंगलों की आग का बड़ा रोल, गढ़वाल विवि-IIT कानपुर के अध्ययन में खुलासा - एटमॉस्फेरिक एनवायरमेंट जर्नल

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय (HNB) और आईआईटी (IIT) कानपुर के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन, मौसम में बदलाव, बादलों का फटना समेत अन्य घटनाओं पर शोध (research) किया है, जिसमें कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. बादल फटने (cloud burst) के कारणों का संबंध जंगलों में लगी आग से भी निकला है.

बादल फटना
बादल फटना

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Published : Jun 30, 2021, 4:38 PM IST

Updated : Jul 19, 2021, 3:01 PM IST

श्रीनगर: उत्तराखंड में जिस तरह से आए दिन बादल फटने (cloud burst) की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसको लेकर वैज्ञानिक पिछले कुछ समय से शोध कर रहे हैं. बादल फटने की घटनाएं लगातार क्यों बढ़ती जा रही हैं? इस पर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि (एचएनबी) श्रीनगर गढ़वाल और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने शोध किया. शोध में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. बादल फटने की घटनाओं में बढ़ोत्तरी का एक कारण जंगलों में लगी आग भी निकला है. अध्ययन की ये रिपोर्ट एटमॉस्फेरिक एनवायरमेंट जर्नल में भी प्रकाशित हुई है.

दरअसल, हाल ही में एचएनबी विवि (HNB research) और आईआईटी कानपुर (IIT kanpur research) के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर (सीसीएन) की सक्रियता को मापा. वैज्ञानिकों ने पहली बार मध्य हिमालय के ईकोसिस्टम के रूप में संवेदनशील क्षेत्रों में मौसम की विभिन्न स्थिति के प्रभाव में अधिक ऊंचाई वाले बादलों के निर्माण और स्थानीय मौसम की घटना की जटिलता पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया.

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2018 से चल रहा शोध

इस दौरान वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया कि सीसीएन (CCN) की उच्चतम सांद्रता भारतीय उपमहाद्वीप में जंगलों की आग से जुड़ी हुई है. शोध में पता चला कि सीसीएन यानी बादल की छोटी बूंदों के आकार के बराबर कण जिस जलवाष्प से बादलों का निर्माण करती हैं, उनमें जंगलों की आग के कणों की मात्रा बेहद ज्यादा थी. यानी सीसीएन का ये बड़ा बादल आग की घटनाओं के जुड़ाव को दर्शाता है. वैज्ञानिक इस पर 2018 से काम कर रहे हैं.

बादल फटने में जंगलों की आग का बड़ा रोल.

इस शोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गढ़वाल विवि के वैज्ञानिक आलोक सागर ने बताया कि आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर एक रिसर्च की गई थी. इसमें उन्होंने एचएनबी विश्वविद्यालय, बादशाहीथौल, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड, भारत के स्वामी राम तीर्थ (एसआरटी) परिसर में क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर (cloud condensation nuclear) का अध्ययन किया.

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शोध में सामने आया कि जब भी जंगल में आग लगती है तो सीसीएन का कंसनट्रेशन (संकेंद्रण) बढ़ जाता है. उसका आकार छोटा हो जाता है. नतीजा बारिश की जमी हुई बूंदें तेजी से नीचे आती हैं. यह कम समय में जोरदार बारिश कर सकते हैं. बादल फटने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. सीसीएन की संख्या सर्दियों, बर्फ गिरने और कोहरा पड़ने की स्थिति में अलग रहती है. बर्फ गिरने पर बेहद कम हो जाती है.

हवा में मौजूद अति सूक्ष्म कणों पर जल वाष्प ठंडी होकर जम जाती हैं. यही आगे चलकर बादलों का निर्माण करते हैं. विशेषज्ञों ने बताया कि हिमालय और गढ़वाल क्षेत्र में वायु प्रदूषण के कणों के स्रोत का पता भी लगाया जा सकता है कि यह कितनी दूरी से आए हैं.

क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर

क्लाउड कंडेनसेशन न्यूक्लियर छोटे-छोटे कण होते हैं, जो आमतौर पर 0.2 माइक्रॉन या एक बटा 100 क्लाउड ड्रॉपलेट के आकार के होते हैं. इस पर जल वाष्प संघनित होती है. यह ऊंचाई पर जाकर पानी के रूप में आ जाते हैं.

Last Updated : Jul 19, 2021, 3:01 PM IST

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