श्रीनगर:प्रदेश को श्रीनगर के रूप में एक नया नगर निगम मिलने जा रहा है, जिसको लेकर श्रीनगर के लोगों में खुशी की लहर है. वहीं राजनीतिक विश्लेषक इसे विकास के रूप में देख रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मनाना है कि प्रदेश में राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव के चलते निगमों में नियोजन की भारी कमी है. विश्लेषकों की मानें तो निगम बनाये जाने से पहले स्थानीय जनता से विकास के मॉडलों को लेकर चर्चा होनी चाहिए थी. जिससे नगर पालिका से नगर निगम बन रहे श्रीनगर में शहरीकरण को लेकर एक बेहतर खाका खिंचा जा सके.
श्रीनगर को नगर निगम बनाए जाने का फैलसा भले भी भाजपा की धामी सरकार ने लिया हो. लेकिन इससे पहले इस विषय पर कांग्रेस की तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने पहल की थी. उस समय के तत्कालीन शिक्षा मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी भी इसकी पैरवी कर चुके थे. लेकिन चौरास क्षेत्र के लोगों के विरोध के चलते ये फैसला कांग्रेस सरकार नहीं ले सकी. लेकिन अब श्रीनगर की जनता को धामी सरकार ने नगर निगम का बड़ा तोहफा दिया है.
उत्तराखंड में नगर निगम बनाए जाने के मानक हालांकि, सरकार की ये राह भी आसान नहीं होगी. नगर निगम बनाने के दौरान सरकार को पहाड़ी क्षेत्र में नगर निगम के लिए एक लाख की जनसंख्या का आंकड़ा खड़ा करना होगा. साल 2011 कि मतगणना के अनुसार श्रीनगर की जनसंख्या 33,449 हजार थी. ऐसे में सरकार को श्रीनगर अन्य ग्रामीण क्षेत्रों को भी जोड़ना होगा.
नगर पालिका परिषद श्रीनगर को नगर निगम बनाना जरूरत या राजनीति. श्रीनगर पालिका में 21 गांवों को जोड़ा:धामी कैबिनेट ने नगर पालिका परिषद श्रीनगर को नगर नगम में तब्दील किए जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है. सरकार ने इसका तोड़ भी निकाल लिया है. श्रीनगर को नगर पालिका बनाने के लिए नगर पालिका क्षेत्र में 21 और गांवों को जोड़ रही है.
इन गांवों के शामिल होने के बाद नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या बढ़कर 37,911 हो रही है. ऐसे में श्रीनगर पर्वतीय क्षेत्र होने के नाते जनसंख्या के हिसाब से नगर निगम घोषित किए जाने के मानदंड में 37 हजार से अधिक और 50 हजार से कम श्रेणी वाले में आ गए हैं.
श्रीनगर का विकास जरूरी:श्रीनगर शहर चारधाम यात्रा का मुख्य पड़ाव है. इस कारण यहां पर चारधाम यात्रा पर आने वाले करीब 10 से 15 हजार यात्री प्रवास करते हैं. इसके साथ ही श्रीनगर शहर गढ़वाल क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों का मुख्य केंद्र है.
श्रीनगर में ही एचएनबी केंद्रीय विश्वविद्यालय, राजकीय पॉलिटेक्निक संस्थान, वीर चंद्र गढ़वाली मेडिकल कॉलेज, एनआईटी, एसएसबी प्रशिक्षण केंद्र और अलकनंदा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट स्थित है. ऐसे में अगर नगर पालिका परिषद श्रीनगर को नगर निगम बनाया जाता है, तो श्रीनगर में विकास से नए आयाम स्थापित होंगे.
हेमवती नंदन गढ़वाल विश्विविद्यालय में राजनीतिक विभाग में प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक प्रो. एमएम सेमवाल के मुताबिक नगर निगम बनाये जाने का फैसला एक बेहतर फैसला है, वो भी उन हालातों में जब पहाड़ में एक भी नगर निगम ना हो. इससे ग्रामीण क्षेत्रों का शहरीकरण हो सकेगा. लोगों को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी. अच्छी सड़कें, बेहतर ड्रेनेज सिस्टम और निगम बस सेवा से लोग लाभान्वित हो सकेंगे. इससे सरकार के आय के स्रोत टैक्स के रूप में बढ़ेंगे और जो भी नए ग्रामीण क्षेत्र इनसे जुड़ेंगे, वहां भी विकास होगा.
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गढ़वाल विश्वविद्यालय में शहरी विकास और नियोजन विषय पर पीएचडी कर रहे शोध छात्र गौरव डिमरी का मानना है कि ये फैसला सराहनीय है. आज नहीं तो कल ये फैसला लिया जाना ही था. श्रीनगर को लंबे अरसे से इसकी जरूरत थी. विकास के दृष्टिगत ये बेहतर फैसला है. उन्होंने कहा कि नगर निगम बनने से श्रीनगर में सुविधाओं को चार चांद लग जाएंगे. आईएएस रैंक के अधिकारी की नियुक्ति नगर आयुक्त के रूप में होगी, जो श्रीनगर के लिए विकास के पथ को अग्रसारित करेगा.
उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जाहिर की प्रदेश में नियोजन को लेकर सरकारों का सही रुझान नहीं रहा है. उन्होंने अपने शोध का उदाहरण देते हुए कहा कि वे देहरादून नगर निगम को लेकर शोध कर रहे हैं. लेकिन वहां जिस रफ्तार से शहर का विकास होना था वो नहीं हो रहा है. शहर की अंदरूनी सड़कों में गड्ढे हैं, ड्रेनेज सिस्टम बेहतर नहीं है. इसमें तेजी लाने की आवश्यकता है, जो दिख नहीं रही है. हालांकि वो इस बात से बेहद खुश हैं कि आखिरकार पहाड़ में पहली नगर निगम की सौगात मिलने जा रही है.