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सावन के पहले सोमवार को कमलेश्वर मंदिर में उमड़े श्रद्धालु, भगवान राम ने भी यहां की थी शिव पूजा

श्रीनगर के प्रसिद्ध कमलेश्वर महादेव मंदिर में भी दूर-दराज से श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए पहुंचे. मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शिव जो पूरे मन से पूजा-अर्चना करता है, उसकी मनोकामना जरूरी पूरी होती है.

kamleshwar temple
कमलेश्वर मंदिर

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Published : Jul 26, 2021, 9:54 AM IST

Updated : Jul 26, 2021, 1:36 PM IST

श्रीनगर: सावन के पहले सोमवार को नगर के शिवालयों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. बारिश के बावजूद भी भक्त अपने घरों से निकलर शिव मंदिर में दूध, जल और बेल पत्र का भोग लगाने पहुंच रहे हैं. ऐसे में श्रीनगर के प्रसिद्ध कमलेश्वर महादेव मंदिर में भी दूर-दराज से श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए पहुंचे. मान्यता है कि श्रावण मास में भगवान शिव जो पूरे मन से पूजा-अर्चना करता है, उसकी मनोकामना जरूरी पूरी होती है.

पुराणों के अनुसार, जब माता सती अपने पिता दक्ष प्रजापति से कुपित होकर यज्ञ कुंड में भस्म हो गई थी तो तब उन्होंने दूसरा जन्म हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में लिया. पार्वती रूप मां सती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूजा अर्चना की. जिस माह वो भगवान शिव की पूजा में लीन थी, वो माह सावन का था. जिसके चलते भगवान शिव को सावन का माह बहुत प्रिय है.

पहले सोमवार को पौराणिक कमलेश्वर मंदिर उमड़े श्रद्धालु.

कमलेश्वर मंदिर की महिमा: कमलेश्वर महादेव एक ऐसा मंदिर है, जो देखने में अन्य शिवालयों की तरह ही है. लेकिन यह संतान प्राप्ति के लिए निभाई जानी वाली पूजा की रस्म बेहद खास है. संतान प्राप्ति की इच्छा लिए भक्त कमलेश्वर मंदिर में घी का दीपक अपने हाथों में लेकर पूरी रात खड़े रहते हैं. ऐसे में एक रात की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव भक्तों की झोली भर देते हैं.

कमलेश्वर या सिद्धेश्वर मन्दिर, गढ़वाल के सर्वाधिक प्रसिद्ध पौराणिक मन्दिरों में से एक है. कमलेश्वर मन्दिर के बिना श्रीनगर को अस्तित्व विहीन कहा जा सकता है. 'यत्र देवः शिवः साक्षाद्वतते शिवयासहः, स्वयं समग्रभावेन नन्दि भृंग्यादि भिर्नृपः, काश्यादिषु च तीर्थेषु वसति ह्यंश मात्रतः, अत्रवै हिमवत्प्रान्ते सर्वो निवसति प्रभुः' अर्थात, ''काशी आदि तीर्थों में भगवान शिव अंश मात्र में वास करते हैं. किन्तु हिमालय में श्रीक्षेत्र के कमलेश्वर महादेव मन्दिर में साक्षात शिव अपने गणों के साथ निवास करते हैं.''

केदारखंड में है वर्णन: अतः परं महाभाग लिंगं वै कमलेश्वरम्, श्रृणुष्वैकमना राजन्नुत्पत्तिं चैव वैभवम्' 'स्कन्दपुराण' के केदारखंड में अध्याय 188 में भी कमलेश्वर महादेव का वर्णन है. इसके अनुसार प्राचीनकाल में वाराणसी से शिह्न नामक ऋषि यहां आये. उन्होंने इस स्थान पर साढ़े पांच हजार वर्षों तक निराहार रहकर शिव आराधना की. फलस्वरूप, पृथ्वी के गर्भ से एक लिंग प्रकट हुआ. शिह्न ऋषि ने विधिपूर्वक इस लिंग का अभिषेक व प्रतिष्ठा करवाई और इसका नाम ‘सिद्धेश्वर महादेव’ प्रसिद्ध हुआ.

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'पुनः कदाचिद् भगवान्नामरूपी जनार्दनः. पूजयामास कमलैः प्रत्यहं शत सम्मितैः.तोतऽवधि महाराज कमलेश्वरतां गतः' अर्थात, ''भगवान राम ने सौ कमलों से इस स्थान पर शिवजी की प्रार्थना की, किन्तु एक पुष्प कम हो जाने के कारण उन्होंने अपना नेत्र अर्पित किया. इसके बाद से यह स्थान कमलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ.''

मंदिर के महंत आशुतोष पुरी बताते हैं कि सावन माह की पूजा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. इस माह में जो भी भक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना करता है. भगवान उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं. श्रावण मास में भक्तों द्वारा मात्र जल चढ़ाने से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं.

Last Updated : Jul 26, 2021, 1:36 PM IST

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