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श्रीनगर NIT के वैज्ञानिक ने किया कमाल, पानी में पारे की मात्रा खोजने और अलग करने वाला सेंसर किया तैयार

डब्लूएचओ के मुताबिक पीने के पानी में पीपीबी (पार्ट पर बिलियन) का लेबल 2 से ज्यादा नहीं होना चाहिए. यदि इससे ज्यादा होता है तो शरीर के लिए हानिकारक होगा.

Dr. Rampal Pandey
डॉ. रामपाल पांडे

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Published : Nov 16, 2020, 3:20 PM IST

Updated : Nov 17, 2020, 11:46 AM IST

श्रीनगर: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड श्रीनगर (एनआईटी) के प्रख्यात रसायन वैज्ञानिक डॉ. रामपाल पांडे ने ऐसा सेंसर तैयार किया है. जिससे न सिर्फ पीने के पानी में पारे की मात्रा का पता लग पाएगा, बल्कि उसके अलग भी किया जा सकता है. मूलरूप से सेंसर केमिकल रिएक्शन के जरिए पारे की पहचान करता है. इस सेंसर को भारतीय पेटेंट संस्थान दिल्ली ने शोध के मानकों पर खरा मानते हुए पेटेंट कर दिया है. ये शोध उत्तराखंड एनआईटी के लिए बड़ी उपलब्धि साबित हुआ है.

उपलब्धि: NIT के वैज्ञानिक ने पानी में पारे की मात्रा खोजने और अलग करने वाला सेंसर तैयार किया

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पारा मानव शरीर के लिए बेहद ही हानिकारक होता है. असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रामपाल पांडे बीते चार सालों से इसी पर काम कर रहे थे. उन्होंने अपने इस केमिकल के जरिए न सिर्फ पीने के पानी में पारे की मात्रा का पता लगाया, बल्कि पारे को पानी से अलग भी किया. इसमें सबसे अच्छी बात ये है कि ये इस पूरी प्रकिया में पानी के अन्य मिनरल्स को भी कोई नुकसान नहीं होता है. डॉ. पांडे ने इस सेंसर को एयाइडिजेल डायोन नाम दिया है.

डब्लूएचओ के मुताबिक पीने के पानी में पीपीबी (पार्ट पर बिलियन) का लेबल 2 से ज्यादा नहीं होना चाहिए. डॉ. पांडे बताते है कि इस पूरे प्रॉसेस में पानी मे मौजूद पारा ही अलग होता है. पानी के अन्य तत्व बरकार रहते है. इससे मात्र घातक पारा ही अलग होता है. उनके बनाये केमिकल को डालते ही पारा होने पर पानी का रंग बदल जाता है.

Last Updated : Nov 17, 2020, 11:46 AM IST

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