श्रीनगर: उत्तराखंड को देवताओं की भूमि यानी देवभूमि के रूप के रूप में विश्वभर में जाना जाता है. कहा जाता है कि उत्तराखंड के कण-कण में भगवान का वास है. विश्व प्रसिद्ध चारधाम (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गगोत्री और यमनोत्री) भी उत्तराखंड में ही मौजूद हैं. कहा जाता है कि इन चारों धामों की रक्षा मां धारी देवी करती हैं. मान्यता है कि मां धारी देवी की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं.
धारी देवी की मूर्ति प्रातः काल श्रद्धालुओं को एक छोटी बच्ची के रूप में दिखाई देती हैं. दोपहर में मां का रूप एक महिला का हो जाता है. शाम के समय मां एक बुजुर्ग रूप में भक्तों को अपने दर्शन देती हैं. मां धारी देवी मंदिर के इतिहास द्वापर काल से बताया जाता है. कुछ ताम्र पत्रों में कहा गया है कि मां भगवती धारी देवी की पूजा अर्चना करने के बाद पांडव स्वर्गारोहण के लिए गए थे, यहां उन्होंने पूजा अर्चना की थी, जिसका सबूत यहां द्रौपदी शिला के रूप में यहां विद्यमान था. लेकिन बाढ़ के आने के कारण वो शिला नदी की बाढ़ में बह गई.
जगतगुरु शंकराचार्य ने भी यहां आकर पूजा-अर्चना की थी. एक कहानी ये भी है कि मां धारी देवी की मूर्ति यहां बह कर आई थी, जो यही पर नदी में समाई हुई थी. लेकिन धारी गांव के रहने वाले एक व्यक्ति के स्वप्न्न में आकर भगवती ने उन्हें उस स्थान का पता दिया और उन्हें स्थापित करने को कहा. उनकी बात को मानते हुए नोरतु नाम के उस व्यक्ति ने मां की मूर्ति को नदी से बाहर निकाला. मूर्ति की पूजा-अर्चना की. ये स्थान धारी गांव के निकट था, जिसके कारण मां को धारी देवी नाम से जाना जाने लगा.