औषधीय गुणों से भरपूर बसिंगे पर मंडरा रहा खतरा श्रीनगर: उत्तरांखड के पर्वतीय इलाके अपनी जैव विविधता से परिपूर्ण हैं. यहां की पहाड़ियों पर जहां संजीवनी बूटी होने की बात कही जाती है, तो यहां की नदियों और झरनों के पानी तक को अमृत जैसे गुणों के भरपूर माना जाता है. ईटीवी भारत आज आपको पहाड़ो में पाई जाने वाले ऐसे ही जंगली पौधे से रूबरू कराने जा रहे है जिसको खाने से असाध्य से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं. आयुर्वेद में इस पौधे से अनेकों दवाइयां बनाई जाती हैं. इस पौधे का नाम बसिंगा (वासा) है.
उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं रीजन में इस बसिंगा की सब्जी बनाई जाती है. बसिंगा की सब्जी खाने में स्वादिष्ट होती है. इसको खाने वाले लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है. श्रीनगर में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार सुनील सीसवाल बताते हैं कि वे बचपन से ही अपने गांव में बसिंगा की सब्जी खाया करते थे. उन्होंने बताया फरवरी और अप्रैल माह में जंगलों से इसके हरी हरी कलियों को तोड़ा जाता है. रात भर चलते पानी में इसे भिगाया जाता है. जिससे इसकी कलियों से कड़वापन निकल जाता है. जिसके बाद इसे सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है.
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वे बताते हैं इन दिनों लालटेना और गाजर घास के कारण अब बसिंगा जंगलों में कम मिलता है. उन्होंने बताया ये दोनों घास जल्दी उग जाती है. जमीन की उर्वरा शक्ति नष्ट कर देती है. जिससे अब बसिंगा जंगलों में कम दिखाई दे रहा हैं. ये ही इसकी विलुप्ति का कारण बन सकता है. उन्होंने बताया बसिंगा का उपयोग दमा के रोगियों के लिए रामबाण की तरह है.
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आयुर्वेद नाड़ी वैद्य डॉक्टर सुधांशु मिश्रा इसके औषधीय गुणों के बारे में बताते हैं. वे बताते हैंं इसका सेवन करने से रक्त को रोका जा सकता है. बाहरी रक्त और शरीर के अंदर ये रक्त रोकने में उपयोगी है. इसकी दो बूंद का सेवन महिलाओं के लिए उपयोगी है. उन्होंने बताया आयुर्वेद में बसिंगा से बहुत सी दवाओं को बनाने की बात है. कई दवाओं का नाम ही बसिंगा के नाम पर भी रखा गया है. उन्होंने बताया इसकी तासीर ठंडी होती है. ज्यादा ठंड में इसका उपयोग सीमित किया जाना चाहिए. उन्होंने इसके उपयोग को जीवन में करने की भी सलाह लोगों को दी है.