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माधो सिंह भंडारी ने अकेले कर डाला था गुल का निर्माण, गांव की खुशहाली के लिए दी बेटे की बलि

वीर माधो सिंह भंडारी टिहरी नरेश महिपत शाह के सेनापति थे. जिन्होंने तिब्बतियों और गोरखाओं को युद्ध में पराजित कर गढ़वाल में अपने शौर्य का लोहा मनवाया था. उन्होंने ही मलेथा गांव में ऐतिहासिक गुल का निर्माण भी किया था.

madho singh bhandari
माधो सिंह भंडारी

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Published : Jan 8, 2020, 12:32 PM IST

श्रीनगर गढ़वालःइन दिनों श्रीनगर के मलेथा गांव में चार दिवसीय माधो सिंह भंडारी मेले का आयोजन किया जा रहा है. यह मेला वीर भड़ माधो सिंह की याद में आयोजित किया जाता है. इस मेले में ग्रामीण मिलजुल कर उनके बलिदान को याद करते हुए नृत्य नाटिका की प्रस्तुति करते हैं. जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. वीर माधो सिंह भंडारी ऐसे वीर पुरुष थे. जिन्होंने अकेले ही मलेथा की गुल का निर्माण किया था. इतना ही नहीं उन्होंने अपने एकलौते बेटे की बलि दी थी. आइये आपको बताते हैं उनकी वीरता की कहानी...

मलेथा में माधो सिंह भंडारी मेले का आयोजन.

वीर भड़ माधो सिंह भंडारी टिहरी नरेश महिपत शाह के सेनापति थे. जिन्होंने तिब्बतियों और गोरखाओं को युद्ध में पराजित किया था. साथ ही गढ़वाल में अपने शौर्य का लोहा मनवाया था. उन्होंने ही मलेथा गांव में ऐतिहासिक गुल का निर्माण भी किया था. जो आज भी इंजीनियरिंग की एक मिसाल है. इस गुल के निर्माण के लिए माधो सिंह भंडारी ने अपने एकलौते बेटे की बलि चढ़ा दी थी.

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बताया जाता है कि मलेथा गांव में बारिश और सिंचाई की सुविधा न होने से फसल सूख गई थी. जिसे देख वीर माधो सिंह भंडारी ने गांव में सिंचाई के लिए नहर बनाने की ठानी, लेकिन नहर लाने के लिए गांव के पास एक पहाड़ी और चट्टान थी. जिससे नहर लाना संभव नहीं था. कहा जाता है कि वीर माधो सिंह भंडारी इस पहाड़ी को तोड़कर नहर बनाने के लिए चल पड़े.

जहां पर उन्होंने कई महीनों तक दिन-रात मेहनत कर नहर बना डाली, लेकिन नहर में पानी नहीं आ पा रहा था. जिससे वे काफी परेशान हो गए थे. तभी एक रात उनके सपने में एक देवी अवतरित हुईं और उन्होंने बेटे की बलि देने के बाद ही नहर में पानी आने की बात कही. जिसके बाद अगले दिन माधो सिंह भंडारी ने अपने बेटे की बलि दे दी. जैसे ही बलि दी गई नहर में पानी जाने लगा.

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वीर माधो सिंह भंडारी के त्याग और कठोर परिश्रम से ही आज मलेथा गांव में फसलें लहलहा रही हैं. आज भी यह गूल मौजूद है, जिससे ग्रामीण सिंचाई करते हैं. उनके याद में ही मलेथा में ये मेला आयोजित किया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि इस मेले की प्रथा आज तक चली आ रही है.

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