पौड़ी: मंडल मुख्यालय पौड़ी से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी धाम भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. इसका धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व भी है. साथ ही इसका वर्णन केदार खंड में भी किया गया है. जानकारी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना साल 1892 में स्वर्गीय दत्त राम अणथ्वाल और उनके बेटे बूथा राम ने की थी.
यह सिद्धपीठ पूरे साल श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं और इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से बहुत से लोगों के परिवार की आजीविका भी चल रही है.यहां पर मंदिर की पूजा सामग्री, भोजन,घरेलू सामान इत्यादि अलग-अलग दुकानें बनाई गईं हैं और यह लोग पिछले कई सालों से यहां पर रहकर मां ज्वाल्पा के आर्शीवाद से अपनी आजीविका चला रहे हैं.
मंदिर के पुजारी भास्करानंद अणथ्वाल के अनुसार इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सूची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी. सूची के तप से मां ने खुश होकर ज्वाला के रुप में उन्हें दर्शन दिए. जब से मां ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रुप में भक्तों व श्रद्धालुओ की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.
जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां ज्वाल्पा देवी से मनोकामना मांगता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में लोगों की विवाह भी करवाए जाते हैं साथ ही यहां पर स्थित धर्मशाला में लोगों को निःशुल्क ठहराया जाता है
उन्होंने बताया कि 18वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह ने इस मंदिर को 11.82 एकड़ सिंचित भूमि दान में दी थी. ताकि यहां अखंड दीपक हेतु तेल की व्यवस्था के लिए सरसों का उत्पादन हो सके. साथ ही बताया कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा की थी तब मां ने उन्हे दर्शन दिए.