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'भुतहा' गांव में लौटी 'जिंदगी', फिर आबाद हुआ सिमली गांव

उत्तराखंड के कीर्तिनगर का सिमली गांव 90 के दशक में तब चर्चा में आया था. जब पलायन के बाद पूरे गांव में मात्र एक परिवार बचा हुआ था और स्थानीय लोग सिमली को भुतहा गांव का दर्जा दे चुके थे. लेकिन अब हालात एकदम उलट है. पलायन से निर्जन होने के बाद 'भुतहा गांव' अब धीरे-धीरे आबाद हो रहे हैं.

Simli village in Kirtinagar
अपनों के साथ दोबारा आबाद हुई सिमली गांव

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Published : Nov 17, 2020, 7:53 PM IST

Updated : Nov 17, 2020, 10:43 PM IST

जल्म लियूंचा जैं धरती मा, कर्ज चुकाण पड़लू तुमथैन

माका दूदा सौं देणू छौं, बौड़िकि औण पड़लु तुमथैन

तुमारु बाटू हेरणा छिन ये, यूं बाटों बिसरेयां ना

बोल्यूं माना, बोल्यूं माना, बोल्यूं माना.

श्रीनगर: गढ़वाली में लिखा नरेंद्र सिंह नेगी का यह गीत कहता है, 'जिस धरती में जन्म लिया है, उसका कर्ज तुम्हें चुकाना पड़ेगा. मां के दूध की सौगंध है तुम्हें कि लौट के अपने पहाड़ आना पड़ेगा. ये रास्ते तुम्हारी प्रतीक्षा में हैं, इन्हें भूल न जाना. मान जाओ, मान जाओ, मान जाओ'

पहाड़ से पलायन कोई नई बात नहीं है. 1960 से 1980 तकलोग नौकरी की तलाश में बड़े शहरों की तरफ पलायन करते थे. 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद भी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में पलायन जारी रहा. हालांकि कोरोना और घर की यादें के बीच कुछ लोग वापस अपने गांवों को जरूर लौटे हैं. ऐसे में अब हम आपको उत्तराखंड के भुतहा गांवों की कुछ अलग कहानी बताने जा रहे हैं.

दीपावली मनाता सिमली गांव.

यह तस्वीर उस राज्य के लिए बहुत अहम है, जो पलायन के लिए देशभर में बदनाम है. उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में पलायन से निर्जन होने के बाद 'भुतहा गांव' कहलाने वाले अब धीरे-धीरे आबाद हो रहे हैं. कीर्तिनगर विकासखंड का न्यूली ग्राम पंचायत का सिमली गांव में एक बार फिर चहल-पहल होने लगी. कभी सिमली गांव में 80 परिवार रहता था. लेकिन शहरी चकाचौंध के बीच लोग गांवों को छोड़ शहरों में बसते चले गए. 90 के दशक में ऐसा भी वक्त आया जब सिमली गांव में मात्र एक परिवार रह गया था.

अपनों के साथ दोबारा आबाद हुई सिमली गांव.

ये भी पढ़ें:उपेक्षा: कभी 'मिनी यूरोप' कहलाने वाला गांव आज झेल रहा पलायन का दंश

सिमली गांव की हालात यह हो गई थी कि लोग इस गांव को 'भुतहा' कहने लगे थे और दिन में भी गांव जाने से कतराते थे. लेकिन इन सबके बीच ऋषिकेश में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. केएन लखेड़ा ने अपने पैतृक गांव में दोबारा बसने का इरादा बनाया. फिर क्या था, डॉ. केएन लखेड़ा ऋषिकेश में अपना सब कुछ छोड़कर वापस लौटे और अपने पैतृक गांव के मकान का जीर्णोद्धार करवाया और परिवार के साथ ही सिमली गांव में बस गए.

दीपावली मनाता सिमली गांव.

इसके साथ ही डॉ, केएन लखेड़ा ने गांव के अन्य लोगों से संपर्क साधना शुरू किया और उन्हें दोबारा गांव वापस आने के लिए प्रेरित किया. डॉ. लखेड़ा की मेहनत रंग लाई, जिसके बाद करीब 8 परिवार शहरों को छोड़कर सिमली गांव वापस लौट आए हैं. इस दौरान दीपावली भी आई और पूरे गांव ने एक साथ बैठकर खाना पकाया और साथ में खुशियों के त्योहार का लुत्फ उठाया. आज पूरा सिमली गांव फिर एकजुट होकर विकास और अपने सपनों के रास्ते पर चल चुका है.

Last Updated : Nov 17, 2020, 10:43 PM IST

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